बंदी छोड़ दिवस




बंदी छोड़ दिवस सिखों के लिए एक प्रमुख त्योहार है जो हर साल दीवाली के दिन मनाया जाता है। यह दिन छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा ग्वालियर के किले से 52 हिंदू राजाओं और उनके स्वयं के रिहाई की याद दिलाता है।

इतिहास और महत्व:

1619 में, गुरु हरगोबिंद जी को मुगल सम्राट जहाँगीर ने गलत तरीके से कैद कर लिया था। उन्हें ग्वालियर के किले में कैद किया गया, जहां वे दो साल तक कैद रहे। यह सुनकर कि गुरु जी को जेल में रखा गया है, उनके अनुयायी बहुत चिंतित हो गए। इसलिए, दीवाली की रात, उन्होंने किले में घुसने और गुरु जी को छुड़ाने की योजना बनाई।
गुरु हरगोबिंद जी ने भी अपनी रिहाई के लिए प्रार्थना की। उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। 52 हिंदू राजा भी उनके साथ रिहा हुए, जिन्हें उसी किले में कैद किया गया था। गुरु जी और राजाओं की रिहाई को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

उत्सव:

बंदी छोड़ दिवस को देश भर में सिखों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन, गुरुद्वारों और मंदिरों में विशेष प्रार्थनाएँ की जाती हैं। लोग अपने घरों और कार्यस्थलों को रोशनी से सजाते हैं। शाम को, लोग आतिशबाजी जलाकर जश्न मनाते हैं।

सिखों के लिए इसका महत्व:

बंदी छोड़ दिवस सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह उन्हें गुरु हरगोबिंद जी के बलिदान और साहस की याद दिलाता है। यह एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है, क्योंकि इस दिन गुरु जी ने 52 हिंदू राजाओं को उनके साथ कैद से मुक्त कराया था।

वर्तमान प्रासंगिकता:

आज के समय में, बंदी छोड़ दिवस हमें याद दिलाता है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है। यह हमें अत्याचार और अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित करता है। यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि भाईचारा और एकता सभी बाधाओं को पार कर सकती है।