बालक और बगुला




एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवा बालक रहता था। वह बहुत ही जिज्ञासु और शरारती था। एक दिन, जब वह गाँव के तालाब के किनारे टहल रहा था, तो उसने एक खूबसूरत बगुले को पानी में मछली पकड़ते हुए देखा।

बालक को बगुले की लंबी गर्दन और तेज आँखें देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। वह चुपके से बगुले के पास गया और उसे करीब से देखने लगा। लेकिन जैसे ही उसने बगुले को छूने की कोशिश की, बगुला उड़ गया।

बालक को बगुला उड़ता देखकर बहुत निराशा हुई। वह उसे पकड़ना चाहता था और उसे अपने घर ले जाना चाहता था। इसलिए, वह बगुले का पीछा करने लगा। वह पेड़ों और झाड़ियों के बीच से भागता रहा, लेकिन बगुला उससे तेज उड़ रहा था।

आखिरकार, बालक थक गया और हार मान ली। वह एक बड़े पेड़ के नीचे बैठ गया और बगुले को देखने लगा।
जैसे ही बगुला दूर जा रहा था, बालक ने कुछ ऐसा देखा जिससे उसका दिल भर आया। बगुले के पैर में एक तीर लगा हुआ था, और वह घायल हो गया था।

बालक को बहुत बुरा लगा। वह बगुले के पास गया और ध्यान से तीर को उसके पैर से निकाला। बगुला आभारी लग रहा था और उसने बालक को अपने पंखों के साथ थपथपाया।
उस दिन से, बालक और बगुला अच्छे दोस्त बन गए। वे अक्सर साथ में तालाब के किनारे जाते थे और मस्ती करते थे। बालक ने बगुले को उड़ान भरना और मछली पकड़ना सिखाया, और बगुला ने बालक को जंगल के रहस्यों के बारे में बताया।

इस कहानी से शिक्षा:

  • जानवर भी हमारी तरह भावनाएँ रखते हैं। हमें उनकी देखभाल और सम्मान करना चाहिए।
  • जिज्ञासा एक अच्छी बात है, लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए कि वह हमें समस्या में न डाल दे।
  • वास्तविक दोस्ती ताकत और दया पर आधारित होती है।