बैसाखी: पंजाब की रौनक, खेती की खुशहाली का त्योहार




वसंत ऋतु की बहारों के आगमन और फसलों की कटाई के मौसम की शुरूआत के साथ, पंजाब का धरती धरमराज की पूजा से गूंज उठती है। बैसाखी, पंजाबियों का सबसे बड़ा त्योहार, इसी खास मौके पर मनाया जाता है।

बैसाखी का पर्व पंजाब के इतिहास, संस्कृति और कृषि जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार, 1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन नए सिखों को अमृतपान करवाया जाता है और गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं।

खेती की खुशियों से सराबोर

पंजाब में बैसाखी का त्योहार खेती-बाड़ी से भी अटूट रूप से जुड़ा है। यह फसलों की कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन किसान अपनी फसलों की पूजा करते हैं और धरती माता के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। पारंपरिक भांगड़ा और गिद्दा नृत्य से गांव-गांव गूंजते हैं, रंग-बिरंगे परिधानों में महिलाएं और पुरुष इस उत्सव को पूरे उत्साह से मनाते हैं।

  • रंगों का पर्व: बैसाखी के अवसर पर पंजाब की गलियां और बाजार रंगों से जगमगा उठते हैं। गुलाबी, पीले और हरे रंग के परिधानों में लोग सजे-धजे नज़र आते हैं।
  • पारंपरिक खेल: इस दिन पंजाब के पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है, जैसे कबड्डी, गिल्ली-डंडा और घुड़दौड़। ये खेल उत्साह और प्रतिस्पर्धा की भावना से भरे होते हैं।
  • मेलों की धूम: बैसाखी के मौके पर पंजाब में कई मेलों का आयोजन होता है, जहां लोग विभिन्न प्रकार की खरीदारी, मनोरंजन और सांस्कृतिक प्रदर्शन का आनंद लेते हैं।

विशेष पकवान और मिठाइयां

बैसाखी का पर्व स्वादिष्ट पकवानों और मिठाइयों से भी जुड़ा है। सरसों का साग और मक्के की रोटी इस त्योहार का पारंपरिक खाना है, जो हर घर में बनाया जाता है। इसके अलावा, गुड़ के तिलपट्टी, गाजर का हलवा और मीठे चावल जैसी मिठाइयां भी बैसाखी के अवसर पर विशेष रूप से तैयार की जाती हैं।

बैसाखी: संस्कृति, कृषि और आस्था का संगम

बैसाखी केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह पंजाब की समृद्ध संस्कृति, कृषि जीवन और खालसा पंथ की आस्था का संगम है। यह एक ऐसा उत्सव है जो समुदाय को एक साथ लाता है, खुशियों को साझा करता है और पंजाब की विरासत का जश्न मनाता है।

वसंत के खिलते फूलों की तरह, बैसाखी पंजाब को अपनी खुशबू और रंगों से सजाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो पीढ़ियों से मनाया जाता रहा है और आने वाले कई वर्षों तक मनाया जाता रहेगा।