भारत-मॉरिशस कर संधि




कॉर्पोरेट टैक्स की दुनिया से परिचय

जैसा कि हम सभी जानते हैं, कॉर्पोरेट जगत अक्सर जटिल कानूनों और विनियमों की भूलभुलैया होता है। और जब करों की बात आती है, तो यह भूलभुलैया और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है, खासकर जब अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन शामिल हों। ऐसे में, भारत-मॉरिशस कर संधि एक ऐसा रास्ता दिखाने का काम करती है जो कॉर्पोरेट्स के लिए इस जटिलता को कम करती है।
भारत-मॉरिशस कर संधि: एक सिंहावलोकन
भारत-मॉरिशस कर संधि, जो 1983 में लागू हुई, एक दोहरा कराधान परिहार समझौता (DTAA) है। इसका उद्देश्य सुनिश्चित करना है कि किसी भी आय पर न तो भारत में और न ही मॉरिशस में दोहरा कर लगाया जाए। इस संधि की कुछ प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
  • लाभांश पर कर छूट: मॉरिशस की कंपनियों द्वारा भारतीय कंपनियों को दिए जाने वाले लाभांश पर भारत में कोई कर नहीं लगता है।
  • पूंजीगत लाभ पर कर छूट: भारतीय कंपनियों में मॉरिशस की कंपनियों के शेयरों को बेचने पर प्राप्त पूंजीगत लाभ पर मॉरिशस में कोई कर नहीं लगता है।
  • स्रोत पर कर की कम दर: भारत में, मॉरिशस की कंपनियों से प्राप्त ब्याज, रॉयल्टी और तकनीकी सेवा फीस पर स्रोत पर कर की दर क्रमशः 5%, 10% और 10% है।
लाभ और नुकसान
भारत-मॉरिशस कर संधि ने विभिन्न लाभ प्रदान किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
  • निवेश आकर्षण: यह संधि भारतीय कंपनियों के लिए मॉरिशस में निवेश को अधिक आकर्षक बनाती है, जिससे भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में वृद्धि हुई है।
  • दोहरे कराधान से बचाव: यह संधि सुनिश्चित करती है कि करदाताओं को एक ही आय पर दोनों देशों में कर नहीं देना पड़े, जिससे कर बोझ कम होता है।
  • कर अनुकूलन: यह संधि कॉर्पोरेट्स को अपनी कर देयता को अनुकूलित करने की अनुमति देती है, जिससे उनकी लाभप्रदता में सुधार होता है।
हालाँकि, कुछ नुकसान भी हैं जिनके बारे में विचार किया जाना चाहिए:
  • कर राजस्व का नुकसान: इस संधि से भारत को कर राजस्व का नुकसान हो सकता है, विशेष रूप से लाभांश और पूंजीगत लाभ पर कर छूट के कारण।
  • कर चोरी की संभावना: कुछ मामलों में, इस संधि का दुरुपयोग कर चोरी या कर परिहार के लिए किया जा सकता है।
वर्तमान परिदृश्य
हाल के वर्षों में, भारत-मॉरिशस कर संधि कर चोरी के संबंध में विवादों का विषय रही है। भारत सरकार ने 2016 में संधि को संशोधित किया, स्रोत पर कर की दरों को बढ़ाया और अन्य उपायों को अपनाया। हालाँकि, संधि अभी भी कर अनुकूलन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बनी हुई है।
निष्कर्ष
भारत-मॉरिशस कर संधि कॉर्पोरेट जगत के लिए एक दोधारी तलवार है। इसने निवेश आकर्षित किया है और दोहरे कराधान से बचाव प्रदान किया है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। इस संधि को सावधानीपूर्वक उपयोग करना और कर चोरी को रोकने के लिए उपयुक्त सुरक्षा उपाय करना महत्वपूर्ण है।