भारत-मॉरिशस टैक्स संधि संशोधन पर विचार चल रहा है, जो कि एक महत्वपूर्ण विकास है जो हमारे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को प्रभावित करेगा। वर्तमान टैक्स संधि
वर्तमान भारत-मॉरिशस कर संधि 1982 में हस्ताक्षरित की गई थी और इसे 1998 में संशोधित किया गया था। यह संधि दोनों देशों के निवासियों को द्विआधारी कराधान से बचाती है और निवेश के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है। प्रस्तावित संशोधन
प्रस्तावित संशोधन का मुख्य उद्देश्य टैक्स चोरी को रोकना और दोनों देशों की राजस्व सुरक्षा को मजबूत करना है। कुछ प्रमुख संशोधनों में शामिल हैं:
* पूंजीगत लाभ पर कर लगाने का अधिकार भारत को स्थानांतरित करना।
* मॉरिशस से भारत में प्राप्त लाभांश और ब्याज पर कम प्रतिधारण कर दरें लागू करना।
* मॉरिशस में कंपनियों को करदाता स्थिति को दुरुपयोग करने से रोकना। संशोधन के संभावित प्रभाव
प्रस्तावित संशोधन के कई संभावित प्रभाव हैं: * भारत के लिए बढ़ा हुआ राजस्व: संशोधन से भारत में पूंजीगत लाभ पर करों की वसूली में वृद्धि हो सकती है। * मॉरिशस के लिए कम निवेश: उच्च प्रतिधारण कर दरें मॉरिशस में निवेश को हतोत्साहित कर सकती हैं। * भारतीय निवेशकों के लिए बढ़ी हुई लागत: मॉरिशस के माध्यम से भारत में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ सकती है। * आर्थिक सहयोग पर संभावित प्रभाव: संशोधन से दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वार्ता और भविष्य
भारत और मॉरिशस वर्तमान में संशोधन पर बातचीत कर रहे हैं। बातचीत का उद्देश्य एक ऐसा समाधान खोजना है जो दोनों देशों के हितों को संतुलित करे। संशोधन के अंतिम परिणाम आने वाले महीनों में स्पष्ट होने की संभावना है। व्यक्तिगत दृष्टिकोण
मैं एक भारतीय हूँ जो भारतीय अर्थव्यवस्था में कर चोरी को रोकने के प्रयासों का समर्थन करता हूँ। हालाँकि, मुझे चिंता है कि प्रस्तावित संशोधन से मॉरिशस के साथ हमारे आर्थिक सहयोग को नुकसान हो सकता है। मेरा मानना है कि दोनों देशों को एक ऐसे समाधान पर पहुँचना चाहिए जो सभी के हितों को संतुलित करे।
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