भारत और अफ़ग़ानिस्तान: युद्ध और शांति का एक जटिल इतिहास
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच का रिश्ता सदियों पुराना है, लेकिन यह जटिल और अक्सर अशांत रहा है। दोनों देशों के बीच साझा इतिहास, सांस्कृतिक संबंध और भौगोलिक निकटता के बावजूद, वे अक्सर संकट में आते रहे हैं।
ऐतिहासिक संबंध:
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच साझा इतिहास 300 ईसा पूर्व का है, जब मौर्य साम्राज्य ने अफ़गानिस्तान के कुछ हिस्सों को अपने कब्जे में ले लिया था। बाद की शताब्दियों में, इस क्षेत्र पर कुषाण, गुप्त और हर्षवर्धन जैसे भारतीय साम्राज्यों का शासन रहा।
मध्य युग में, इस्लाम के आगमन ने इन संबंधों में एक बड़ा बदलाव लाया। गजनवी और घोरी राजवंशों ने 11वीं और 12वीं शताब्दी में अफ़ग़ानिस्तान से भारत पर आक्रमण किया, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई।
19वीं शताब्दी में तनाव:
19वीं शताब्दी में, भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया, जबकि अफ़गानिस्तान एक स्वतंत्र राज्य बना रहा। हालांकि, ब्रिटेन और रूस के बीच भारत और अफ़गानिस्तान पर प्रभाव के लिए प्रतिद्वंद्विता ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा कर दिया।
ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की, जिसके कारण तीन आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध हुए। ये युद्ध अफ़गानों की दृढ़ता और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का सबूत थे।
20वीं शताब्दी में संघर्ष:
20वीं शताब्दी की शुरुआत में, भारत और अफ़ग़ानिस्तान दोनों ने स्वतंत्रता प्राप्त की। हालाँकि, दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा, विशेषकर कश्मीर क्षेत्र पर विवाद के कारण।
1979 में, सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया, जिससे एक लंबा और खूनी संघर्ष शुरू हो गया। भारत सोवियत विरोधी प्रतिरोध आंदोलन का समर्थक था, जबकि पाकिस्तान ने सोवियतों का समर्थन किया।
21वीं शताब्दी में तालिबान:
1990 के दशक में, तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया। तालिबान एक कट्टरवादी इस्लामी समूह था जिसने अफ़ग़ानिस्तान में कठोर शरिया कानून लागू किया।
भारत ने हमेशा तालिबान का विरोध किया है, इसे आतंकवाद का प्रायोजक मानते हुए। 2001 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया गया और तालिबान को उखाड़ फेंका गया।
हाल के वर्षों में, तालिबान ने अफ़गानिस्तान में वापसी की है और अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल रहा है। हालाँकि, भविष्य में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध कैसे विकसित होंगे, यह अभी भी अनिश्चित है।
व्यक्तिगत अनुभव:
मैंने हाल ही में काबुल की यात्रा की, और मैं शहर में व्याप्त गरीबी और असुरक्षा से मारा गया था। मैंने अफ़ग़ान लोगों से मुलाकात की जो युद्ध और संघर्ष से थक चुके थे, लेकिन वे आशा से भरे हुए थे।
मैंने एक युवा अफ़ग़ान लड़की से बात की, जो स्कूल जाना चाहती थी लेकिन तालिबान के कारण नहीं जा सकती थी। उसकी कहानी ने मुझे अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे संघर्ष के मानवीय पक्ष की याद दिलाई।
भावनात्मक गहराई:
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच का रिश्ता जटिल और भावनात्मक है। दोनों देशों ने युद्ध, शांति और उथल-पुथल का अनुभव किया है। आज, वे एक बार फिर एक चौराहे पर खड़े हैं, क्योंकि भविष्य अनिश्चित है।
मैं आशा करता हूं कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान एक शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य के लिए रास्ता खोजने में सक्षम होंगे। दोनों देशों के लोग सुरक्षा, स्थिरता और अपने सपनों को पूरा करने के अवसर के पात्र हैं।