भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़
भारतीय न्यायपालिका को संभालने वाले महान दिमाग
भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ एक प्रसिद्ध न्यायविद और एक प्रेरणादायक व्यक्ति हैं। उनका जन्म 11 नवंबर, 1959 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता, वाई. वी. चंद्रचूड़ भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं।
शिक्षा और करियर
चंद्रचूड़ ने सेंट कोलंबस स्कूल, नई दिल्ली से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री और दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम की उपाधि भी प्राप्त की।
चंद्रचूड़ ने 1982 में सुप्रीम कोर्ट में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने लॉ फर्म जमशेद जी. लालजी एंड कंपनी के साथ काम किया। 1998 में, उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 2000 में, उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। 2013 में, उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 2016 में, उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 9 नवंबर, 2022 को, उन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
विचारधारा और निर्णय
चंद्रचूड़ एक प्रगतिशील और उदारवादी न्यायाधीश के रूप में जाने जाते हैं। वह मौलिक अधिकारों का प्रबल समर्थक है और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में प्रगतिशील निर्णय दिए हैं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, एलजीबीटीक्यू अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में बात की है।
चंद्रचूड़ के सबसे उल्लेखनीय निर्णयों में से कुछ में शामिल हैं:
* 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द करना, जो समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध बनाती थी।
* 2019 में महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने पर फैसला।
* 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखने पर फैसला।
* 2022 में कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में फैसला, जिसमें अदालत ने कहा कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
विरासत
डी. वाई. चंद्रचूड़ एक उत्कृष्ट न्यायविद हैं जिन्होंने भारतीय न्यायपालिका में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह एक प्रगतिशील और उदारवादी न्यायाधीश हैं जो नागरिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों के प्रबल समर्थक हैं। उनकी विरासत उनके प्रगतिशील निर्णयों में और भारतीय संविधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में रहेगी।