मेधा पाटकर, एक ऐसा नाम जो सामाजिक आंदोलनों और पर्यावरण संरक्षण की दुनिया में एक चमकता तारा बन गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की अथक लड़ाकू के रूप में जानी जाने वाली पाटकर ने दशकों तक अपने मिशन को अडिग रूप से आगे बढ़ाया है, अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।
मेधा पाटकर का जन्म 1954 में मुंबई में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक इंजीनियर थे और उनकी माँ एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। पाटकर की सामाजिक सक्रियता की जड़ें उनके बचपन में ही दिखाई देती थीं। वह हमेशा हाशिए पर रहने वालों और वंचितों के लिए खड़ी रहती थीं।
पाटकर ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सामाजिक कार्य में डिग्री हासिल की। स्नातक होने के बाद, उन्होंने आदिवासी अधिकारों और भूमि सुधार जैसे मुद्दों पर काम करने वाले विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करना शुरू किया।
1985 में, पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन में शामिल हो गईं, जो नर्मदा नदी पर बड़े बांधों के निर्माण के खिलाफ एक अभियान था। उन्होंने महसूस किया कि ये बांध हजारों आदिवासियों और अन्य समुदायों को विस्थापित कर देंगे, जो सदियों से नदी के किनारे रह रहे थे।
पाटकर और आंदोलन के अन्य सदस्यों ने अपना विरोध व्यक्त करने के लिए अहिंसक प्रतिरोध और सत्याग्रह के गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाया। उन्होंने उपवास, रैलियों और सविनय अवज्ञा के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाई।
आंदोलन के वर्षों के कड़े संघर्ष के बाद, पाटकर और उनकी टीम कई जीत हासिल करने में सफल रही। उन्होंने कुछ बांधों को रोकने में मदद की और एक विस्थापन नीति लागू करवाई जो विस्थापितों के लिए उचित मुआवजे और पुनर्वास सुनिश्चित करती है।
हालाँकि, चुनौतियाँ जारी रहीं। आंदोलन का सामना सरकार और उद्योग से विरोध का सामना करना पड़ा, और पाटकर को कई बार गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी लड़ाई हार नहीं मानी।
मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक प्रतीक बन गई हैं। उनका दृढ़ संकल्प, अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता और सामाजिक न्याय के लिए उनकी निरंतर वकालत ने उन्हें भारत और दुनिया भर में एक प्रेरणादायक व्यक्ति बना दिया है।
वर्तमान जलवायु संकट के संदर्भ में, मेधा पाटकर का काम और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खतरों पर ध्यान आकर्षित किया है और स्थायी विकास के विकल्पों की वकालत की है।
मेधा पाटकर आज भी एक जीवंत आवाज हैं, जो पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपनी आवाज उठा रही हैं। उनका विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित और सशक्त बनाता रहेगा।
"मेधा पाटकर, एक योद्धा जो कभी नहीं झुकी"