मायूस मेहमान




सर्दियों की एक शाम थी और मैं अपनी किताबों में खोया हुआ था, जब मैंने दरवाजे की घंटी बजते हुए सुना। मैं उठा और दरवाजा खोला, तो देखा एक अजनबी खड़ा है।

"क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?" उसने पूछा।

मैं थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन फिर भी उसे अंदर आने दिया। वह एक बूढ़ा आदमी था, उसकी पीठ थोड़ी झुकी हुई थी और उसकी आँखों में उदासी थी। उसने अपना कोट उतारा और सोफे पर बैठ गया।

"मेरा नाम रमेश है," उसने कहा।

मैंने अपना परिचय दिया और हम बातें करने लगे। मुझे पता चला कि वह एक यात्री है जो कई सालों से दुनिया घूम रहा है। उसने अपनी कहानी सुनाई, कैसे वह एक अमीर परिवार में पैदा हुआ था, लेकिन जवान होने पर घर छोड़कर निकल गया।

उसने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने और काम करने के अपने अनुभवों का वर्णन किया। वह एक खदान में मजदूर रहा था, एक जहाज़ पर रसोइया और एक सर्कस में जोकर भी।

जैसे-जैसे वह अपनी कहानी सुनाता जा रहा था, मैं उसकी आवाज़ में एक गहरापन महसूस करने लगा। यह एक ऐसे व्यक्ति की आवाज़ थी जिसने जीवन की कठिनाइयों का सामना किया था, लेकिन फिर भी आशा नहीं खोई थी।

"क्या मैं रात यहाँ बिता सकता हूँ?" उसने पूछा।

मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के हाँ कह दिया। मुझे लगा कि वह मेरे लिए एक अच्छा साथी होगा।

रात के खाने में, हमने अपनी जिंदगी की कहानियाँ साझा कीं। मैंने उसे अपनी पढ़ाई और लेखन के बारे में बताया। उसने मुझे अपने सफर के रोमांच और मुसीबतों के बारे में बताया।

"मुझे नहीं पता कि मुझे क्या करना चाहिए," उसने कहा। "मैं बहुत अकेला हूँ।"

मैंने उसे गले लगाया। मैंने उसे बताया कि वह अकेला नहीं है, कि हम सभी को कभी-कभी अकेलापन महसूस होता है। मैंने उसे बताया कि वह हमेशा मेरे लिए एक दोस्त होगा।

अगली सुबह, उसने मुझे धन्यवाद दिया और अपनी यात्रा जारी रखने के लिए चला गया। मुझे नहीं पता कि मैं उसे दोबारा कभी देख पाऊँगा या नहीं, लेकिन मुझे पता है कि वह एक लंबे समय तक मेरे साथ रहेगा।

वह मेरा मेहमान था, लेकिन वह एक अजनबी नहीं था। वह एक दोस्त था, एक साथी यात्री जो जीवन की यात्रा में कुछ समय मेरे साथ चलता रहा।