ये वाक्य मैंने कितनी बार लोगों के मुंह से सुना है, गिना नहीं जाता। बेशक, इसका मतलब ये नहीं कि मैं मलयाली होने पर गर्व नहीं करता हूं। मैं अपने राज्य, संस्कृति और भाषा से बहुत प्यार करता हूं। लेकिन इस वाक्य में एक अलग ही छिपा हुआ तंज है, जो मेरे दिल को दुखाता है।
लोग अक्सर "मलयाली है, तो क्या हुआ?" कहते हैं, जब वे किसी मलयाली की सफलता या उपलब्धि को कमतर आंकना चाहते हैं। जैसे कि मलयाली होना कोई ऐसी चीज है जो हमारी क्षमताओं को सीमित करती है। जैसे कि हम बाकी भारतीयों से किसी तरह कमतर हैं।
लेकिन ये सच्चाई नहीं है। मलयाली भी उतने ही मेहनती, बुद्धिमान और प्रतिभाशाली हैं जितने भारत के किसी भी दूसरे राज्य के लोग। हमने कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हम ऐसे कई महान नेताओं, लेखकों और कलाकारों का घर हैं जिन्होंने दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है।
तो फिर क्यों जब हमारी सफलता की बात आती है, तो लोग "मलयाली है, तो क्या हुआ?" कहते हैं? मेरा मानना है कि इसके पीछे दो कारण हैं।
लेकिन किसी भी समूह के बारे में सामान्यीकरण करना खतरनाक है। सभी मलयाली घमंडी नहीं होते हैं, और सभी भारतीय मलयाली को अलग नहीं समझते हैं। हमें एक-दूसरे को अपने विचारों और भावनाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए।
मैं इस वाक्य को "मलयाली है, तो क्या हुआ?" की जगह "मलयाली है, तो गर्व है!" से बदलना चाहता हूं। यह एक सरल वाक्य है, लेकिन इसका दुनिया में बहुत बड़ा प्रभाव हो सकता है। यह मलयाली को यह दिखाने का एक तरीका है कि हम पर गर्व है, और यह अन्य भारतीयों को यह दिखाने का एक तरीका है कि मलयाली भी उतने ही सम्मान के पात्र हैं जितने अन्य राज्य के लोग।
तो अगली बार जब कोई आपसे कहे "मलयाली है, तो क्या हुआ?", तो कृपया उनसे यह कहने के बजाय "मलयाली है, तो गर्व है!" कहें। यह एक छोटा सा बदलाव है, लेकिन यह एक बड़ा बदलाव ला सकता है।