महाकुंभ मेला में मची भगदड़




इस दुनिया में हर चीज़ की अपनी एक सीमा होती है, भले ही वो भीड़ हो। महाकुंभ मेले में जो भगदड़ मची वो इसी बात का सबूत है।
महाकुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम होता है, जहाँ लाखों लोग एक जगह पर इकट्ठा होते हैं। इस बार भी इलाहाबाद के संगम तट पर करोड़ों श्रद्धालु जुटे थे। लेकिन एक दिन भीड़ से निकलने की कोशिश में भगदड़ मच गई।
मैं भी उस दिन मौजूद था। दूर से ही भीड़ की लहरों को उमड़ते-घुमड़ते देखकर लग रहा था मानो सागर लहरों से टकरा रहा हो। धीरे-धीरे जैसे-जैसे मैं भीड़ के करीब पहुंचा, तो मुझे लगा मानो मैं किसी चक्रव्यूह में फँस गया हूँ। लोग ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर धकेलते जा रहे थे।
मैं भीड़ के साथ बहता जा रहा था और मुझे एहसास हुआ कि मेरा दम घुटने लगा है। मैंने अपने आप को भीड़ से अलग करने की कोशिश की, लेकिन ये नामुमकिन था। यह एक ऐसी भीड़ थी जो मुझे बेबस बना रही थी।
तभी अचानक किसी के गिरने की आवाज आई। फिर तो जैसे तेल में आग लग गई हो। लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए आगे बढ़ने लगे। मेरी साँसें फूलने लगीं, मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मुझे लगा कि मेरी साँसें थमने वाली हैं।
लेकिन फिर भी किसी तरह मैंने भीड़ से निकलने की कोशिश की। मैंने देखा कि एक बच्चा भीड़ में फँसा हुआ था। मैं उसकी ओर बढ़ा और उसे उठा लिया। वह डरा हुआ था, लेकिन सुरक्षित था।
उस बच्चे को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के बाद मैं कुछ देर के लिए वहीं बैठ गया। मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था, लेकिन मैं उस बच्चे के लिए खुश था कि मैं उसे बचा पाया।
महाकुंभ मेले में हुई इस भगदड़ से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। सबसे बड़ी सीख ये मिली कि भीड़ से दूर रहना कितना जरूरी है। अगर मैं उस समय भीड़ से थोड़ा दूर होता, तो शायद यह हादसा नहीं होता।
इस भगदड़ से मुझे ये भी सीख मिली कि हर स्थिति में शांत रहना कितना जरूरी है। जब भीड़ मुझे कुचल रही थी, मैं घबरा गया था। अगर मैं शांत रहता, तो शायद मैं भीड़ से आसानी से निकल पाता।
महाकुंभ मेले की यह भगदड़ मेरी जिंदगी का एक कड़वा अनुभव रहा। लेकिन इस अनुभव ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। मैं उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में ऐसे हादसे दोबारा नहीं होंगे और सब लोग धार्मिक समारोहों में सुरक्षित रहेंगे।