मुहर्रम: मातम या एकता की मिसाल?




मुहर्रम, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना, शिया मुसलमानों के लिए गहरे शोक और स्मरण का समय है। यह इस्लाम के सबसे पवित्र महीनों में से एक है, और पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है।

इमाम हुसैन की कहानी एक त्रासदी है जिसने इस्लामी दुनिया को गहराई से प्रभावित किया है। उन्हें 680 ईस्वी में कर्बला के रेगिस्तान में उमय्यद खलीफा यजीद के सैनिकों ने शहीद कर दिया था। उनकी हत्या ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच टूट का बीज बोया, जो आज भी जारी है।

मुहर्रम के दौरान, शिया मुसलमान मातम मनाते हैं, काले कपड़े पहनते हैं और इमाम हुसैन के नाम पर गीत गाते हैं। वे नौहाख्वानी करते हैं, जंजीरों से खुद को कोड़ते हैं और सीना पीटते हैं। ये अनुष्ठान इमाम हुसैन के बलिदान और उमय्यदों के अत्याचार को याद करने का एक तरीका है।

दूसरी ओर, कुछ मुसलमान मुहर्रम को एकता के महीने के रूप में देखते हैं। वे इसे धार्मिक संप्रदायों के मतभेदों को दूर करने और एकजुट होने का अवसर मानते हैं। वे मानते हैं कि इमाम हुसैन का बलिदान सभी मुसलमानों के लिए है, न केवल शियाओं के लिए।

  • मुहर्रम का त्योहार आज भी इस्लामी दुनिया में मनाया जाता है, लेकिन इसका स्वरूप विभिन्न समुदायों में भिन्न होता है। कुछ समुदाय मातम के पारंपरिक अनुष्ठानों पर जोर देते हैं, जबकि अन्य एकजुटता और समझ पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए आत्मनिरीक्षण और प्रतिबिंब का समय भी है। वे इमाम हुसैन के जीवन और बलिदान के बारे में सोचते हैं और अपने स्वयं के जीवन में उनके कार्यों को कैसे प्रतिबिंबित कर सकते हैं।

मुहर्रम एक जटिल और बहुआयामी त्योहार है। यह शोक और स्मरण का समय है, लेकिन यह एकता और समझ का समय भी है। यह मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों के लिए इस्लामी इतिहास और संस्कृति के बारे में अधिक जानने का अवसर है।

मुहर्रम के अवसर पर, आइए हम इमाम हुसैन के बलिदान को याद करें और सभी मुसलमानों के बीच एकता और शांति के लिए प्रार्थना करें।