मुहर्रम: शोक और स्मरण का महीना




सावन की झड़ी थमते ही आता है मुहर्रम का महीना। शिया मुसलमानों के लिए ये महीना विशेष महत्त्व रखता है। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और ये इस्लामी नववर्ष का प्रतीक भी है। पर, शिया मुसलमानों के लिए मुहर्रम गम और शोक का महीना है। इस महीने में वो इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत पर मातम मनाते हैं।
मुहर्रम के दिन इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया था। वे यज़ीद के खिलाफ लड़ रहे थे, जो उस समय का खलीफा था। यज़ीद एक क्रूर और अत्याचारी शासक था, जिसने लोगों पर ज़ुल्म ढाया था।
इमाम हुसैन ने यज़ीद के अत्याचार का विरोध किया और उनके खिलाफ आवाज़ उठाई। इससे यज़ीद क्रोधित हो गया और उसने इमाम हुसैन और उनके परिवार को मारने की साजिश रची।
मुहर्रम के दसवें दिन, जो आशूरा के नाम से जाना जाता है, इमाम हुसैन और उनके साथियों को घेर लिया गया। उन्हें बहुत कम पानी दिया गया और उन्हें भूखा रखा गया। फिर, यज़ीद के सैनिकों ने उन पर हमला किया और उन्हें शहीद कर दिया।
इमाम हुसैन की शहादत इस्लामी इतिहास की एक दुखद घटना है। यह अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक है। मुहर्रम में शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं और उनके बलिदान को सलाम करते हैं।
मुहर्रम के दौरान शिया मुसलमान कई तरह के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वे मजलिसें आयोजित करते हैं, जहाँ वे इमाम हुसैन की शहादत के बारे में भाषण देते हैं और नौहा पढ़ते हैं। वे ताज़िया भी निकालते हैं, जो इमाम हुसैन और उनके परिवार के मकबरे का प्रतीक है।
मुहर्रम एक गम और शोक का महीना है। पर, यह साहस और बलिदान का महीना भी है। शिया मुसलमान इमाम हुसैन के बलिदान से यह सीखते हैं कि अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना ज़रूरी है। भले ही हमें अपनी जान गँवानी पड़े, हमें कभी सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
मुहर्रम का महीना शिया और सुन्नी मुसलमानों को एक साथ लाता है। वे मिलकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं। मुहर्रम साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता का प्रतीक है।
इस महीने में, इमाम हुसैन की शहादत को याद करके, हम उनके साहस और बलिदान से सीख सकते हैं। हम सीख सकते हैं कि अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना ज़रूरी है। हम सीख सकते हैं कि सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। और, हम सीख सकते हैं कि एक साथ खड़े होकर, हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।