महावीर जयंती: अहिंसा और शांति के प्रतीक भगवान महावीर का जीवन दर्शन





जय महावीर! आज हम महावीर जयंती मना रहे हैं, जो जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को समर्पित है। यह दिन उनके जन्म की याद दिलाता है और उनकी महान शिक्षाओं का उत्सव मनाता है, जो सदियों से मानवता का मार्गदर्शन करती रही हैं।


भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. में वैशाली के कुंडग्राम में एक शाही परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें दूसरों के दुख और पीड़ा के प्रति गहरी सहानुभूति थी। 30 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने घर और परिवार को त्याग कर आध्यात्मिक खोज की यात्रा शुरू की।


कठोर तप और ध्यान के 12 वर्षों के बाद, महावीर को 42 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्हें जैन धर्म का 24वां तीर्थंकर माना जाता है, जो उन तीर्थंकरों की श्रृंखला का अंतिम तीर्थंकर है जिन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को स्थापित किया था।

  • अहिंसा (अहिंसा): यह महावीर की शिक्षाओं का आधार था। उन्होंने जीवित प्राणियों के प्रति हिंसा को सर्वोच्च पाप माना और अहिंसा के पालन पर जोर दिया, चाहे वह विचार से हो, शब्द से हो या कर्म से हो।
  • सत्य (सत्य): महावीर ने सत्य को सर्वोच्च गुण माना। उन्होंने कहा कि सत्य ही हमारी रक्षा कर सकता है और हमें मोक्ष की ओर ले जा सकता है।
  • अस्तेय (चोरी न करना): महावीर ने चोरी को एक गंभीर अपराध माना। उन्होंने सिखाया कि चोरी दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन है।
  • ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य): महावीर ने ब्रह्मचर्य या यौन संयम को एक महत्वपूर्ण गुण माना। उन्होंने कहा कि कामुक सुख मोक्ष के मार्ग में बाधा डालता है।
  • अपरिग्रह (गैर-अधिग्रह): महावीर ने गैर-अधिग्रह या अनावश्यक संपत्ति के त्याग पर जोर दिया। उन्होंने सिखाया कि संपत्ति मोह का कारण है और मोक्ष के मार्ग में बाधा डालती है।


भगवान महावीर की शिक्षाएँ सदियों से प्रासंगिक रही हैं और आज भी आधुनिक समाज को मार्गदर्शन करती हैं। उनकी अहिंसा की अवधारणा ने दुनिया भर में कई शांति आंदोलनों को प्रेरित किया है, और उनके सिद्धांत हमें अपने भीतर और अपने आसपास शांति और सद्भाव खोजने में मदद करते हैं।


इस महावीर जयंती पर, आइए हम भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं को याद करें और उनके सत्य, अहिंसा और करुणा के मार्ग पर चलने का संकल्प लें। उनकी शिक्षाएँ हमें एक बेहतर दुनिया बनाने में मदद करेंगी, जहाँ सभी जीव शांति और सद्भाव में रह सकें।


जय महावीर!