लोग हमेशा किसी न किसी से सवाल पर विवाद करते रहते हैं, एक-दूसरे के विचारों की आलोचना करते रहते हैं, एक-दूसरे के काम को नापसंद करते रहते हैं।
क्या हम भी युद्ध के मैदान में तो नहीं हैं?विचारों का, शब्दों का, actions का, कार्य के तरीकों का, जीवन जीने के तरीकों का युद्ध। अपने विचारों पर अडिग रहना, दूसरों के विचारों को कुचलना, अपने काम को ही सर्वोपरी मानना, दूसरों के काम को नापसंद करना।
क्यों होता है युद्ध?शायद इसलिए क्योंकि हम अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं, अपने विचारों को ही सही मानते हैं, अपने तौर-तरीकों को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
फिर क्या है असली युद्ध?असली युद्ध वही है जो हम अपने अन्दर लड़ते हैं, अपने विचारों से, अपनी भावनाओं से, अपने अहंकार से, अपनी शंकाओं से।
कौन-से हथियारों का इस्तेमाल करते हैं हम युद्ध में?शब्दों, विचारों, भावनाओं, actions का, दूसरों को नीचा दिखाने का, दूसरे की आलोचना करने का, दूसरे को गलत सिद्ध करने का, दूसरे को दोष देने का।
क्या कभी जीता जा सकता है ये युद्ध?शायद नहीं, क्योंकि युद्ध जारी रहेगा। हम में और हमारे विचारों में, हम में और हमारी भावनाओं में।
इस युद्ध में क्या खत्म होता है?शायद हमारे अन्दर की शान्ति, शायद हमारे अन्दर का प्रेम, शायद हमारे अन्दर का करुणा, शायद हमारे अन्दर का संवेदनशीलता।
फिर क्यों लड़ते हैं हम ये युद्ध?शायद इसलिए क्योंकि हम डरते हैं, अपने आप को खो देने से, दूसरों को खो देने से, शायद इसलिए क्योंकि हम नहीं जानते कि शान्ति क्या है, प्रेम क्या है, करुणा क्या है, संवेदनशीलता क्या है।
तो क्या करें हम?शायद हमें इस युद्ध को रोकना होगा, अपने अन्दर की शान्ति को ढूंढना होगा, अपने अन्दर के प्रेम को जगाना होगा, अपने अन्दर की करुणा को जगाना होगा, अपने अन्दर की संवेदनशीलता को जगाना होगा।
क्या वाकई हम कर सकते हैं ऐसा?शायद, अगर हम कोशिश करें तो। अगर हम एक कदम बढ़ाएं शान्ति की ओर, प्रेम की ओर, करुणा की ओर, संवेदनशीलता की ओर।