राकेश दौलताबाद: एक विस्मरण की कगार पर साहित्य का रत्न




हमारे देश में अनेक साहित्यकार ऐसे हुए हैं जिनकी प्रतिभा और कृतियों का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाया। ऐसे ही एक मनीषी हैं राकेश दौलताबाद। उनका नाम शायद आज की पीढ़ी के लिए अपरिचित होगा, पर उनके लेखन की गहराई और समाज के प्रति उनकी चिंतनशील दृष्टि आज भी प्रासंगिक है।

राकेश दौलताबाद का जन्म 1939 में महाराष्ट्र के अकोला जिले के दौलताबाद गांव में हुआ था। उन्होंने हिंदी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की और तत्पश्चात अध्यापन के क्षेत्र में प्रवेश किया। साहित्य लेखन की उनकी यात्रा विद्यार्थी जीवन से ही प्रारंभ हो गई थी। उनकी रचनाएँ 'नयी कविता' आंदोलन के महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।

दौलताबाद की कविताएँ समाज की विसंगतियों और इंसानियत के मूल्यों पर गहराई से चिंतन करती हैं। उनकी भाषा सरल और सहज है, पर उनके शब्दों में अद्भुत शक्ति है। वे समाज में व्याप्त भेदभाव, शोषण और अन्याय पर बेबाकी से बोलते हैं। उनकी कविताओं में ग्रामीण जीवन की सादगी और शहरी जीवन की जटिलताओं का भी यथार्थ चित्रण मिलता है।

"गाँव हो या शहर,/इंसानियत मर रही है।/धर्म के नाम पर नफ़रत,

जाति-पाँति की दीवारें,/सब इंसानियत को खा रही हैं।"

राकेश दौलताबाद की कहानियाँ भी भारतीय समाज की जटिलताओं को उद्घाटित करती हैं। उनकी कहानियों में आम आदमी का संघर्ष, उसके सपने और आकांक्षाएँ जीवंत हो उठती हैं। वे पात्रों का मनोविज्ञान गहरी पैठ से समझते हैं और उनकी भावनाओं को पाठकों तक बखूबी पहुँचाते हैं।

दौलताबाद ने नाटक लेखन में भी अपना लोहा मनवाया है। उनके नाटक समाज की विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य करते हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करते हैं। उनके नाटकों में 'समय का चक्र' और 'विचारों का मंथन' जैसे अनेक विचारोत्तेजक संवाद मिलते हैं।

  • उनकी प्रमुख कृतियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • कविता संग्रह: "यात्रा", "जागृति", "विद्रोह"
    • कहानी संग्रह: "जीवन की धारा", "पीड़ा के साये", "आशा की किरण"
    • नाटक: "समय का चक्र", "विचारों का मंथन", "जीवन की कठपुतली"

    राकेश दौलताबाद को साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1985 में उन्हें उनकी कविता संग्रह "जागृति" के लिए हिंदी अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त, उन्हें महाराष्ट्र राज्य साहित्य पुरस्कार और कबीर सम्मान जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

    "साहित्यकार का धर्म है सत्य का साथ देना,

    अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना।"

    राकेश दौलताबाद हमारे बीच से यूँ चले गए जैसे कोई मोमबत्ती धीरे-धीरे बुझ जाती है, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हमारे दिलों को छूती हैं। उनकी कविताएँ, कहानियाँ और नाटक हमें समाज की वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं और इंसानियत के मूल्यों को बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।

    आज के दौर में, जब भौतिकवाद और स्वार्थ साहित्य को भी अपनी चपेट में लेने की कोशिश कर रहा है, राकेश दौलताबाद जैसे साहित्यकारों को याद करना और उनकी कृतियों को पढ़ना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उनके लेखन में इंसानियत का दर्पण है, जो हमें हमारे मूल्यों को पहचानने और समाज को एक बेहतर जगह बनाने के लिए प्रेरित करता है।