रथ यात्रा




जय जगन्नाथ! आज हम बात करेंगे एक ऐसे पावन पर्व की, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। यह पर्व है रथ यात्रा का, जो भगवान जगन्नाथ, भगवान बलराम और माता सुभद्रा की मनाई जाती है।
यह यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को पुरी के भव्य जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होती है। इस यात्रा के दौरान भगवान की तीनों मूर्तियां भव्य रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती हैं।

रथ यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण खुद ही द्वारका से पुरी आए थे और वहीं विराजमान हुए। इस यात्रा को भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका से पुरी यात्रा के रूप में भी देखा जाता है।

रथ यात्रा का सबसे खास आकर्षण होता है "रथयात्रा"। इस रस्मी में तीनों रथ खींचे जाते हैं। रथ खींचने का अधिकार केवल पुरुषों को है। यह अधिकार वंशानुगत होता है। रथ खींचने के लिए लगभग 5,000 लोग नियुक्त होते हैं।

रथ यात्रा के दौरान पुरी और उसके आसपास के इलाके एक उत्सव के रूप में सज जाते हैं। भक्त भगवान के रथों के साथ नाचते-गाते हैं। हर तरफ भजन-कीर्तन और भक्ति का माहौल होता है।

रथ यात्रा एक महान सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व है। यह भारत की एकता और भाईचारे का प्रतीक है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।

अगर आप कभी पुरी आते हैं, तो रथ यात्रा का अनुभव जरूर करें। यह एक अविस्मरणीय अनुभव होगा।

  • रथ यात्रा के दौरान तीनों रथों का नाम क्रमशः नंदीघोष, तलध्वज और देवदलन है।

  • रथ यात्रा से पहले, भगवान की मूर्तियों को स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।

  • रथ यात्रा के दौरान, भगवान की मूर्तियों को रथों पर रखा जाता है और रथों को भारी रस्सियों से खींचा जाता है।

  • रथ यात्रा लगभग 10 किलोमीटर की दूरी तय करती है।

  • रथ यात्रा के दौरान, भक्त "जय जगन्नाथ" का नारा लगाते हैं।

जय जगन्नाथ! जय भारत!