राधा अष्टमी को जन्माष्टमी के पंद्रहवें दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की प्रेमिका राधा जी का जन्म हुआ था। राधा जी श्री कृष्ण की आराध्या और उनकी शक्ति हैं। इस दिन भक्त राधा जी की पूजा, भोग और आरती करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
राधा जी को भगवान कृष्ण से भी अधिक प्रिय माना जाता है। भगवद गीता में भी राधा जी का उल्लेख "हृषिकेश" के रूप में किया गया है। राधा जी का जन्म वृषभानु और कीर्ति नामक ग्वालों के घर हुआ था। राधा जी बहुत ही सुंदर, बुद्धिमान और गुणवान थीं। उनकी लीलाएं बहुत ही मनमोहक और आकर्षक थीं।
राधा जी कृष्ण की प्रियतम होने के साथ-साथ उनकी सहचरी और सलाहकार भी थीं। वह कृष्ण के हर कार्य में उनकी सहायता करती थीं। राधा जी को भगवान कृष्ण की सर्वोच्च भक्त माना जाता है। उनकी भक्ति का स्तर इतना ऊंचा था कि वह कृष्ण में ही लीन हो गईं।
राधा अष्टमी के दिन भक्त राधा जी की पूजा करते हैं। इस दिन राधा जी को श्रृंगार किया जाता है, उनके लिए भोग लगाया जाता है और उनकी आरती की जाती है। इस दिन राधा जी से प्रेम, भक्ति और कृपा की कामना की जाती है।
राधा अष्टमी का दिन भक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन राधा जी की पूजा करने से भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। राधा जी भक्तों के कष्टों को दूर करती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
जय राधे!