लालकृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति में एक दिग्गज व्यक्ति हैं, जिनकी विरासत देश के आधुनिक इतिहास को आकार देने में उनके अमिट योगदान से परिभाषित हुई है। आजीवन राजनीतिज्ञ और विचारक, आडवाणी ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को एक अमिट छाप छोड़ी है।
28 नवंबर, 1927 को कराची (अब पाकिस्तान) में जन्मे, आडवाणी का पालन-पोषण एक सिंधी परिवार में हुआ था। कम उम्र में ही, वह अपने परिवार के साथ मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। अपनी युवावस्था में, आडवाणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संपर्क में आए, एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन जिसने उनके राजनीतिक विचारों को आकार दिया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, आडवाणी भारतीय जनसंघ (BJS) में शामिल हो गए, जो RSS की राजनीतिक शाखा थी। उन्होंने 1951 में राजस्थान के कोटा से लोकसभा के लिए अपना पहला चुनाव लड़ा। हालाँकि वह हार गए, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनाना शुरू कर दिया।
1977 में, जनसंघ ने भारतीय लोक दल (BLD) के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। आडवाणी को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया और उन्होंने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में कार्य किया। हालाँकि, सरकार केवल तीन साल तक चली और आडवाणी विपक्ष में लौट आए।
1980 में, जनता पार्टी के विभाजन के बाद, आडवाणी भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक बने। उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और इसके विचारधारा और नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1990 के दशक में, भाजपा आडवाणी के नेतृत्व में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। उन्होंने हिंदुत्व विचारधारा के लिए प्रचार किया और राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया, जो अयोध्या में एक मंदिर के निर्माण की मांग कर रहा था। इस आंदोलन ने भारतीय राजनीति को ध्रुवीकृत किया और आडवाणी को एक विवादास्पद व्यक्ति बना दिया।
1998 में, भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का गठन किया और आडवाणी प्रधानमंत्री बने। हालाँकि, उनकी सरकार केवल 13 महीने ही चल पाई। 2004 में, भाजपा ने आम चुनावों में हार का सामना किया और आडवाणी विपक्ष के नेता बने।
2015 में, आडवाणी ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और 'राष्ट्र धर्म संस्था' की स्थापना की। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और तीन कृषि कानूनों का विरोध किया, जो उनकी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पारित किए गए थे।
अपने पूरे करियर में, आडवाणी भारतीय राजनीति में एक ध्रुवीकरण करने वाला व्यक्ति रहे हैं। उनके समर्थक उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में देखते हैं जिन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद को मुख्यधारा में लाने में मदद की। उनके आलोचक उन्हें एक संप्रदायवादी नेता के रूप में देखते हैं जिन्होंने भारत के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है।
राजनीति से परे, आडवाणी एक लेखक और विचारक भी हैं। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें "माई कंट्री माई लाइफ" और "नेशनहुड रीडेफाइंड" शामिल हैं।
लालकृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। उनकी विरासत जटिल और विवादास्पद है, लेकिन उनका देश के आधुनिक इतिहास पर स्थायी प्रभाव पड़ा है।