लाल कृष्ण आडवाणी: संस्कृति के रक्षक और राजनीति के दिग्गज




भारतीय राजनीति के इतिहास में लाल कृष्ण आडवाणी एक महान व्यक्ति हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से अपने शुरुआती जुड़ाव से लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता बनने तक, उन्होंने राष्ट्र की आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संघ के वर्ष:
आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को कराची, पाकिस्तान में हुआ था। बचपन से ही, वह राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित थे। 1941 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में, वह आरएसएस में शामिल हो गए। संघ के साथ उनके जुड़ाव ने उनके जीवन को आकार दिया और उनकी राजनीतिक मान्यताओं की नींव रखी।

बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आडवाणी ने आरएसएस के लिए पूर्णकालिक रूप से काम करना शुरू किया। उन्होंने जयपुर, जोधपुर और दिल्ली सहित विभिन्न शहरों में काम किया, संघ की विचारधारा का प्रचार किया और राष्ट्रवाद का संदेश फैलाया।

राजनीतिक प्रवेश:
1970 के दशक में, आपातकाल के दौरान, आडवाणी भारतीय राजनीति के पटल पर आए। वह जनता पार्टी में शामिल हो गए और इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए।
आपातकाल के बाद, आडवाणी जनता पार्टी के उपाध्यक्ष बने।しかし、पार्टी के भीतर बढ़ते मतभेदों के कारण 1980 में उनका निष्कासन हो गया।
तब आडवाणी ने भाजपा की स्थापना में मदद की, जो जनता पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध थी।
भाजपा का उदय:
आडवाणी भाजपा के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने पार्टी के महासचिव, राष्ट्रीय अध्यक्ष और विपक्ष के नेता सहित कई पदों पर काम किया।
आडवाणी के नेतृत्व में, भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ा और धीरे-धीरे अपने आधार का विस्तार किया। उन्होंने 1998 में एनडीए गठबंधन का नेतृत्व किया, जिसने भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन किया।
राम मंदिर आंदोलन:
आडवाणी को राम मंदिर आंदोलन के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक एक रथ यात्रा का नेतृत्व किया, जिसने देश भर में हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। आंदोलन ने अंततः 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस को जन्म दिया।
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल:
2002 से 2007 तक, आडवाणी एनडीए सरकार में उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यरत रहे। उन्होंने सरकार की कई नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और भारत के दूसरे नागरिक के रूप में उनकी व्यापक रूप से प्रशंसा की गई।
वाजपेयी सरकार के पतन के बाद, आडवाणी भाजपा के मार्गदर्शक मंडल बने। उन्होंने पार्टी में वरिष्ठ नेताओं में से एक के रूप में कार्य करना जारी रखा और देश भर में प्रचार किया।
विरासत:
आडवाणी भारतीय राजनीति की एक विरासत छोड़कर गए हैं। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, एक प्रेरक नेता और एक संस्कृति के रक्षक थे। उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद को भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर एक प्रमुख शक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आडवाणी अपने कड़े रुख और सार्वजनिक भाषणों के लिए जाने जाते हैं। वह एक विपुल लेखक भी हैं, जिन्होंने "माय कंट्री माई लाइफ" और "नेशनहुड डिफाइंड" जैसी कई पुस्तकें लिखी हैं।
आडवाणी भारत की राजनीति में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किए जाएंगे, जिन्होंने राष्ट्रवाद को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। उनकी विरासत आने वाले कई वर्षों तक भारतीय राजनीति को आकार देती रहेगी।