लाल बहादुर शास्त्री: सादगी के प्रतीक, दृढ़ता के ध्वजवाहक




भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय में हुआ था। बचपन से ही वे एक मेधावी और जिज्ञासु छात्र थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित होकर, उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और महात्मा गांधी के अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए।
शास्त्री जी अपने साहस, दृढ़ संकल्प और सादगी के लिए जाने जाते थे। गिरफ्तारी और कारावास की कठिनाइयों के बावजूद, वे हमेशा स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे। 1946 में, उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य चुना गया, और बाद में वे 1951 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल हुए।
1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उनकी नियुक्ति को कई लोगों ने आश्चर्य के साथ देखा, जो उन्हें "आकस्मिक प्रधानमंत्री" के रूप में देखते थे। लेकिन शास्त्री जी ने अपनी योग्यता साबित की और भारत को चुनौतीपूर्ण समय से पार पाने में मदद की।
शास्त्री जी के नेतृत्व में, भारत ने 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध जीता। उन्होंने "जय जवान, जय किसान" का नारा भी दिया, जो सेना और किसानों के महत्व पर जोर देता था। शास्त्री जी का मानना था कि आत्मनिर्भरता भारत की सच्ची प्रगति की कुंजी थी। उन्होंने हरित क्रांति की शुरुआत की, जिससे भारत को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिली।
दुर्भाग्य से, शास्त्री जी का प्रधानमंत्रित्व काल अल्पकालिक रहा। 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु की परिस्थितियां अभी भी अज्ञात हैं, और उनकी हत्या के कई सिद्धांत मौजूद हैं।
लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे नेता थे जिनके पास असाधारण साहस, दृढ़ संकल्प और सरलता थी। उन्होंने भारत को कठिन समय से पार किया और देश को प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाया। उनकी विरासत भारतीयों को सादगी, समर्पण और राष्ट्रवाद के महत्व की याद दिलाती रहेगी।