विजय माल्या का नाम आज हर किसी के जहन में एक भगोड़े कारोबारी के तौर पर आता है. लेकिन एक जमाना था जब उन्हें भारत के सबसे सफल और चर्चित उद्योगपतियों में शुमार किया जाता था. किंग ऑफ गुड टाइम्स के नाम से मशहूर माल्या की यूनाइटेड ब्रूवरीज कंपनी केयरबर्ग ग्रुप द्वारा अधिग्रहण किए जाने तक भारत की सबसे बड़ी शराब निर्माता कंपनी थी.
शराब के साम्राज्य की नींव
माल्या का जन्म 18 दिसंबर, 1955 को कर्नाटक के उडुपी में एक अमीर परिवार में हुआ था. उनके पिता विट्ठल माल्या उद्योगपति थे और उन्हें अपने पिता की संपत्ति विरासत में मिली. 1983 में, माल्या ने यूनाइटेड ब्रूवरीज कंपनी को संभाला. उनके नेतृत्व में, कंपनी ने तेजी से विकास किया और भारत में बाजार हिस्सेदारी हासिल की.
फॉर्मूला 1 और राजनीति
शराब कारोबार के साथ, माल्या ने अन्य क्षेत्रों में भी रुचि ली. 2007 में, उन्होंने फॉर्मूला 1 टीम फोर्स इंडिया में निवेश किया, जो किंगफिशर एयरलाइंस के प्रायोजन से चली. टीम ने कई успехи हासिल की और माल्या के जुनून और खेल के प्रति प्रेम को दर्शाया.
माल्या राजनीति में भी सक्रिय थे. वह 2008 से 2017 तक राज्यसभा के सदस्य थे और उन्हें संसद में मुखर आवाज के रूप में जाना जाता था. हालाँकि, 2016 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की.
विवादों का दौर
माल्या की सफलता के साथ-साथ विवाद भी जुड़े रहे. 2012 में, किंगफिशर एयरलाइंस बंद हो गई और माल्या पर कर्ज की धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया. वह 2016 में देश से भाग गए और वर्तमान में यूनाइटेड किंगडम में रहते हैं.
माल्या पर हजारों करोड़ रुपये के बैंक ऋण चूक का आरोप है और भारत सरकार द्वारा उनका प्रत्यर्पण करने के प्रयास जारी हैं. हालांकि, वह प्रत्यर्पण से लड़ रहे हैं और मामले अभी अदालत में हैं.
जटिल विरासत
विजय माल्या एक जटिल व्यक्ति हैं जिनकी विरासत विरोधाभास से भरी है. वह एक सफल उद्यमी थे जिन्होंने भारतीय शराब उद्योग को बदल दिया, लेकिन उनकी विवादास्पद व्यावसायिक प्रथाओं और कानून से भागने ने उनकी उपलब्धियों पर दाग लगा दिया है.
माल्या की कहानी एक अनुस्मारक है कि सफलता हमेशा आचार संहिता और कानून के पालन के साथ नहीं आती है. उनकी विरासत पर आने वाले कई वर्षों तक बहस होने की संभावना है.
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