वट सावित्री




वट सावित्री की कथा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक ऐसी कथा है जो पतिव्रता स्त्री की भक्ति और निष्ठा का प्रतीक है। इस कथा के अनुसार, सावित्री नाम की एक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के चंगुल से वापस लाया था।

सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, जो एक निर्धन लेकिन पुण्यात्मा व्यक्ति थे। विवाह के कुछ समय बाद, सत्यवान को ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि एक साल के भीतर उनकी मृत्यु हो जाएगी। सावित्री इस भविष्यवाणी से विचलित नहीं हुईं और उन्होंने अपने पति के साथ रहने का संकल्प लिया।

जैसे-जैसे सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आता गया, सावित्री उपवास रखने और प्रार्थना करने लगीं। सत्यवान की मृत्यु के दिन, सावित्री ने उनका पीछा जंगल में किया, जहां यमराज उनकी आत्मा को लेने आए थे।

सावित्री ने यमराज से विनती की कि वह उनके पति को उनके साथ जाने दें। यमराज ने सावित्री की भक्ति और निष्ठा से प्रभावित होकर उन्हें तीन वरदान दिए। सावित्री ने पहला वरदान अपने सास-ससुर के लिए मांगा, कि उनके पुत्र के मरने के शोक से उन्हें मुक्ति मिले। दूसरा वरदान स्वयं के लिए मांगा, कि वह सौ पुत्रों की माता बने। तीसरा वरदान उन्होंने अपने पति के लिए मांगा, कि उन्हें मृत्यु से बचाया जाए।

यमराज को सावित्री का धैर्य और दृढ़ विश्वास देखकर दया आ गई और उन्होंने सत्यवान को पुनर्जीवित कर दिया। इस तरह, सावित्री अपने पति को यमराज के चंगुल से वापस लाने में सफल रहीं और उनकी भक्ति और निष्ठा अमर हो गई।

वट सावित्री की कथा पति-पत्नी के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार और भक्ति किसी भी बाधा को पार कर सकता है। आज भी, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं।