वट सावित्री: पति की लंबी उम्र के लिए अटल श्रद्धा का पर्व
आजकल के इस भागदौड़ वाले जीवन में, जब रिश्तों की डोर दिन-ब-दिन कमज़ोर पड़ती जा रही है, ऐसे में सावित्री और सत्यवान की कहानी हमें अपने जीवनसाथी के लिए अटूट श्रद्धा और त्याग की ताकत का एहसास कराती है। वट सावित्री का त्योहार इसी प्रेम और बलिदान की अनूठी कहानी का प्रतीक है।
सावित्री और सत्यवान की कथा:
दक्षिण भारत के मद्र देश में शाल्व नाम का एक राजा था। उसकी अद्भुत सुंदरता और बुद्धिमानी की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। एक बार राजा की बेटी सावित्री स्वयंवर में मद्र देश आई और उसकी नज़र सुंदर और गुणवान सत्यवान पर पड़ी। राजा ने अपनी बेटी को सत्यवान से विवाह करने से मना किया, क्योंकि उसे भविष्यवाणी की गई थी कि सत्यवान विवाह के एक साल बाद ही मर जाएगा।
लेकिन सावित्री ने अपने पिता की बात नहीं मानी और सत्यवान से विवाह कर लिया। विवाह के बाद, वे दोनों एक साधारण जीवन जीने लगे। सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटता था और सावित्री उनकी देखभाल करती थी।
सत्यवान की मृत्यु और सावित्री का संघर्ष:
विवाह के एक साल बाद, उस भयावह दिन का आगमन हो गया जब सत्यवान को मरना था। सावित्री अपने पति की रक्षा के लिए दृढ़ थी। जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए, तो सावित्री ने उनका पीछा करना शुरू किया।
यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया कि मृत्यु तो सबको आती है और उसे अपने भाग्य को स्वीकार करना चाहिए। लेकिन सावित्री अडिग रही। उसने यमराज से कहा, "मैं अपने पति के बिना नहीं रह सकती। इसलिए, मुझे भी अपने साथ ले जाइए।"
यमराज सावित्री की श्रद्धा और दृढ़ संकल्प से प्रभावित हुए। उन्होंने सावित्री को तीन वरदान दिए। सावित्री ने पहला वरदान अपने ससुर के नेत्रहीन होने पर उनकी आंखों की रोशनी वापस करने के लिए मांगा। दूसरा वरदान अपने सास-ससुर के खोए हुए राज्य को पाने के लिए मांगा, जिसे उनकी संपत्ति पर एक चाचा ने कब्ज़ा कर लिया था। और तीसरा वरदान उसने अपने पति के जीवन के लिए मांगा।
यमराज ने सावित्री के पहले दो वरदान तुरंत स्वीकार कर लिए, लेकिन तीसरे वरदान पर उन्हें संदेह था। उन्होंने कहा, "मैं तुम्हारे पति को वापस नहीं ला सकता, लेकिन मैं तुम्हें एक और वरदान दे सकता हूं।"
सावित्री समझ गई कि यमराज उसके पति को वापस नहीं लौटाएंगे। उसने कहा, "यदि आप मेरे पति को वापस नहीं ला सकते, तो मैं अपने पति के साथ मरने के लिए तैयार हूं।"
यमराज सावित्री के दृढ़ संकल्प से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अंततः उसे तीसरा वरदान दिया। उन्होंने कहा, "तुम्हारे पति सौ पुत्रों के पिता बनेंगे।"
सावित्री इस वरदान से संतुष्ट हुई। वह यमराज के साथ अपने पति के पास लौटी और उसके शरीर के पास बैठ गई। यमराज ने सत्यवान की आत्मा को वापस ला दिया और वह जीवित हो गया।
इस तरह सावित्री ने अपने पति की जान बचा ली। उनकी अटूट श्रद्धा और बलिदान की कहानी आज भी हर शादीशुदा महिला के लिए प्रेरणा है।
वट सावित्री का त्योहार:
वट सावित्री का त्योहार श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। वे पेड़ के चारों ओर सूत के धागों को लपेटती हैं और पेड़ की जड़ों में पानी डालती हैं।
परंपरा और रीति-रिवाज:
वट सावित्री के त्योहार से जुड़ी कई परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। इस दिन, कुछ महिलाएं उपवास भी रखती हैं। वे बरगद के पेड़ की पूजा करने से पहले सरगी खाती हैं। सरगी में मिठाइयां, फल और मेवे शामिल होते हैं।
वट सावित्री की कथा भी इस दिन महिलाएं सुनती हैं। कथा के अनुसार, सावित्री ने यमराज को अपने पति के साथ जंगल में जाने के लिए मनाया था। वह जंगल में इतनी देर तक चलीं कि सूर्यास्त हो गया।
जब वे जंगल से निकल रहे थे, तो यमराज ने सावित्री से एक फल मांगा। सावित्री ने उन्हें एक मीठा फल दिया। यमराज ने वह फल खा लिया और फिर उन्हें एहसास हुआ कि वह विषैला था।
यमराज को गुस्सा आया और उन्होंने सावित्री से कहा कि उन्होंने उन्हें मारने की कोशिश की है। लेकिन सावित्री ने शांति से उत्तर दिया, "मैंने आपको वह फल दिया जो मुझे लगा कि आप खाना चाहेंगे।"
यमराज सावित्री की बुद्धि और विनम्रता से प्रभावित हुए। उन्होंने सावित्री को अपने पति के साथ वापस लौटने की अनुमति दे दी।
वट सावित्री का महत्व:
वट सावित्री का त्योहार पति-पत्नी के बीच निःस्वार्थ प्रेम और बलिदान की याद दिलाता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा प्यार हमेशा साहस, दृढ़ संकल्प और त्याग से भरा होता है।
वट सावित्री का त्योहार महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें सिखाता है कि भले ही जीवन में चुनौतियां आती हैं, लेकिन हमारी श्रद्धा और दृढ़ संकल्प से हम किसी भी बाधा को दूर कर सकते हैं।