वरलक्ष्मी व्रतम्




वरलक्ष्मी व्रतम् एक ऐसा त्योहार है जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह त्योहार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं वरलक्ष्मी मां की पूजा करती हैं और उनके लिए व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।

वरलक्ष्मी मां को महालक्ष्मी का ही एक रूप माना जाता है। उनके दाहिने हाथ में विजय की पताका, बाईं ओर कमल का फूल, पीछे हाथ में शंख और चक्र तथा सामने हाथ में कलश होता है। उनकी सवारी सिंह है।

व्रत की विधि:

वरलक्ष्मी व्रत के लिए महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और साफ कपड़े पहनती हैं। फिर घर की साफ-सफाई की जाती है और व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाया जाता है और उस पर वरलक्ष्मी मां की मूर्ति या तस्वीर रखी जाती है।

  • पूजा में सबसे पहले वरलक्ष्मी मां को स्नान कराया जाता है।
  • फिर उन्हें वस्त्र, आभूषण और फूल अर्पित किए जाते हैं।
  • इसके बाद उन्हें भोग लगाया जाता है।
  • पूजा के अंत में आरती उतारी जाती है और प्रसाद बांटा जाता है।
व्रत का महत्व:

वरलक्ष्मी व्रत को करने से महिलाओं को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  • सौभाग्य की प्राप्ति: माना जाता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • समृद्धि की प्राप्ति: इस व्रत को करने से महिलाओं को धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • संतान की प्राप्ति: जो महिलाएं संतान की कामना करती हैं, वे इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति कर सकती हैं।
  • परिवार में सुख-शांति: इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: इस व्रत को करने से महिलाओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कथा:

वरलक्ष्मी व्रत की एक पौराणिक कथा भी है। एक बार देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु के साथ कैलाश पर्वत पर गईं। वहां उन्होंने पार्वती जी को बहुत सुंदर वस्त्र और आभूषण पहने हुए देखा। लक्ष्मी जी को पार्वती जी के आभूषण बहुत पसंद आए और उन्होंने उनसे आभूषण उधार मांगे।

पार्वती जी ने लक्ष्मी जी को अपने आभूषण उधार दे दिए। लक्ष्मी जी आभूषण पहनकर बहुत खुश हुईं और उन्हें उतारना नहीं चाहती थीं। जब विष्णु जी को पता चला कि लक्ष्मी जी ने पार्वती जी के आभूषण उधार लिए हैं, तो उन्होंने क्रोधित होकर लक्ष्मी जी को पृथ्वी पर भेज दिया।

पृथ्वी पर, लक्ष्मी जी को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। उन्हें भोजन नहीं मिलता था और वे भिखारिन बनकर घूमती थीं। एक दिन, लक्ष्मी जी एक गरीब ब्राह्मणी के घर पहुंचीं। ब्राह्मणी ने लक्ष्मी जी को भोजन और वस्त्र दिए।

लक्ष्मी जी ब्राह्मणी की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने उसे एक वरदान दिया। लक्ष्मी जी ने कहा, "जो भी स्त्री श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मेरी पूजा करेगी, उसे मेरे समान सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होगी।"

ब्राह्मणी ने लक्ष्मी जी की पूजा की और उसे अपार धन-धान्य की प्राप्ति हुई। तभी से, महिलाएं वरलक्ष्मी व्रत करने लगीं।

वरलक्ष्मी व्रत एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो महिलाओं के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य लाता है। इस व्रत को करने से महिलाएं अपने परिवार की रक्षा कर सकती हैं और अपने मनोकामनाएं पूरी कर सकती हैं।