वीर सावरकर: एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी की अनकही कहानी




आजादी के इतिहास में वीर सावरकर एक ऐसा नाम है, जो उनके राष्ट्रभक्ति और बलिदान की अमिट छाप छोड़ गया है। हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म "वीर सावरकर" हमें इस महान क्रांतिकारी के जीवन और कार्यों की झलक देती है।

सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध विद्रोह की लौ मन में जलती थी। 1890 के दशक में, वह शिवाजी मराठा की कहानियों से बहुत प्रेरित हुए और खुद को भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया।

1905 में, सावरकर लंदन की यात्रा पर गए, जहाँ उन्होंने 'इंडियन होम रूल सोसाइटी' की स्थापना की। उन्होंने 'हिंदू राष्ट्रवाद' और 'हिंदू स्वराज' की अवधारणाओं को आगे बढ़ाया, जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जेल में डाल दिया गया।

सावरकर ने अपनी सजा के दौरान 'हिंदुत्व' और 'स्वातंत्र्यवीर सावरकर' नामक पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बहुत प्रेरित किया। 1924 में उनकी रिहाई के बाद, उन्हें काले पानी की सजा दी गई और उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल में भेज दिया गया।

सावरकर ने सेलुलर जेल में 10 लंबे और कठिन वर्ष बिताए। उन्होंने अमानवीय परिस्थितियों का सामना किया, लेकिन उनकी आत्मा अडिग रही। 1937 में, उनकी सजा माफ की गई और उन्हें भारत लौटने की अनुमति दी गई।

भारत लौटने के बाद, सावरकर ने हिंदू महासभा में शामिल होकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदू संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों की स्थापना की।

भारत की स्वतंत्रता के बाद, सावरकर ने पाकिस्तान के खिलाफ 'विभाजन विरोधी' आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा पर जोर दिया।

8 फरवरी, 1966 को वीर सावरकर का निधन हो गया। उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज को प्रभावित करती है। उन्हें एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी, विद्वान और विचारक के रूप में सम्मानित किया जाता है।

  • वीर सावरकर के जीवन और कार्यों से हम कई महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं:
  • राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता के लिए बलिदान की भावना
  • शिक्षा और ज्ञान की शक्ति
  • सहनशक्ति और दृढ़ संकल्प का महत्व
  • हिंदू संस्कृति और एकता का सम्मान
वीर सावरकर की कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्चा राष्ट्रवाद साहस, समर्पण और देशभक्ति की भावना से प्रेरित होता है। उनकी विरासत हमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और अपने देश के लिए बलिदान करने वालों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए प्रेरित करती है।