शीतकालीन संक्रांति, जिसे हाइबरनल संक्रांति भी कहा जाता है, तब होती है जब पृथ्वी के ध्रुवों में से कोई भी सूर्य से अपनी अधिकतम दूरी पर पहुंच जाता है। उत्तरी गोलार्ध में, यह दिन 'सबसे छोटा दिन' कहलाता है और दिसंबर माह के 21-22 तारीख के आसपास पड़ता है।
शीतकालीन संक्रांति को प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना के रूप में मनाया जाता रहा है। विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में, इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भारत में, शीतकालीन संक्रांति को 'मकर संक्रांति' के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दान करते हैं और तिल के लड्डू खाते हैं।
शीतकालीन संक्रांति के बाद दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। यह दिन नई शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन से वसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है।
शीतकालीन संक्रांति एक समय है आत्मनिरीक्षण और नवीनीकरण का। यह दिन हमें अपने जीवन पर विचार करने और इसे बेहतर बनाने का अवसर देता है। यह दिन हमें आशा और खुशी का संदेश देता है।
आइए हम शीतकालीन संक्रांति का जश्न मनाएं और जीवन में नई शुरुआत करें।