शरद पूर्णिमा उत्सव




शरद ऋतु का आगमन हर्ष और उल्लास का प्रतीक है। ऋतु परिवर्तन के साथ ही प्रकृति एक नया रूप लेती है और इसी के साथ हिंदू धर्म में कई त्यौहार मनाए जाते हैं। शरद पूर्णिमा भी एक ऐसा ही त्यौहार है जो शरद ऋतु के आगमन के साथ मनाया जाता है।
यह पूर्णिमा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है। दिनों में इसकी गणना इस तरह से होती है कि दशहरे के 15 दिन बाद शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है।
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है जिसके कारण इस दिन की रात में चंद्रमा का आकार बहुत बड़ा दिखाई देता है। इसीलिए इसे "कोजागरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों की छतों पर बैठकर चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं और खीर का भोग लगाते हैं।
शरद पूर्णिमा का त्यौहार प्रेम और एकता का प्रतीक है। इस दिन लोग मिलकर गरबा और डांडिया खेलते हैं और एक साथ भजन गाते हैं। शरद पूर्णिमा की रात को "रमा एकादशी" भी कहा जाता है। इस रात को भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी राधा के साथ रासलीला की थी। इसीलिए इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की भी जाती है।
शरद पूर्णिमा का दिन आयुर्वेद के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वात दोष की अधिकता होती है। इसलिए इस दिन अन्न में खीर और घी का सेवन करना चाहिए। खीर शरीर को ठंडा रखती है और घी वात दोष को कम करता है।
इस दिन चंद्रमा की रोशनी में सोना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। चंद्रमा की रोशनी शरीर को शांति और सुकून देती है। इस दिन के बारे में मान्यता है कि इस दिन किए गए उपायों का फल जल्द ही प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन लोग अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ करते हैं।
शरद पूर्णिमा का त्यौहार उत्सवों और खुशियों का प्रतीक है। यह दिन प्रेम, एकता और समृद्धि का संदेश देता है और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अवसर है।