क्या आपने कभी श्रीनिवास प्रसाद के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो मैं आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहा हूं जिसने न केवल भारतीय साहित्य में क्रांति ला दी, बल्कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रसाद का जन्म 1898 में कर्नाटक के मैसूर में हुआ था। बचपन से ही उन्हें साहित्य का शौक था। वह एक कुशल कवयित्री थीं, और उनकी कविताएँ अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती थीं।
प्रसाद की शादी 1917 में हुई थी, लेकिन दुर्भाग्य से, उनके पति की जल्द ही मृत्यु हो गई। एक विधवा के रूप में, प्रसाद ने खुद को स्वतंत्रता संग्राम में फेंक दिया। वह महात्मा गांधी की अनुयायी थीं, और उन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
प्रसाद की कविताएँ उनके देशभक्ति और सामाजिक न्याय के लिए जुनून को दर्शाती हैं। वह महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं, और उन्होंने अपनी कविताओं में लैंगिक भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक "भारत माता" है, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए उनकी प्रबल लालसा को व्यक्त करती है। "माँ तुझे सलाम" उनकी एक और प्रसिद्ध कविता है, जिसे आज भी देशभक्ति के अवसरों पर गाया जाता है।
प्रसाद को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें 1968 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 1980 में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।
श्रीनिवास प्रसाद भारतीय साहित्य की एक दिग्गज शख्सियत थीं। वह एक कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उनकी कविताएँ आज भी हमारे दिलों को छूती हैं और हमारे देश के इतिहास की याद दिलाती हैं।