सिताराम येचुरी: एक निःस्वार्थ योद्धा





राजनीति में, जहाँ स्वार्थ और भ्रष्टाचार अक्सर हावी होते हैं, ऐसे नेता ढूंढना दुर्लभ है जो आम आदमी की सेवा करने के लिए समर्पित हों। सिताराम येचुरी ऐसे ही एक नेता हैं जो अपने पूरे जीवन काल में देश और लोगों के लिए संघर्ष करते रहे हैं।


येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और छात्र आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1975 में, इमरजेंसी के दौरान, उन्हें जेल भेजा गया था।


जेल से रिहा होने के बाद, येचुरी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हो गए। वे जल्द ही पार्टी के उभरते हुए युवा नेताओं में से एक बन गए और 1992 में पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य बने। 2005 में, वे राज्यसभा के लिए चुने गए और 2015 में उन्हें पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया।


येचुरी एक करिश्माई नेता हैं जो अपने स्पष्टवादी विचारों और लोगों के दुखों के लिए उनकी सहानुभूति के लिए जाने जाते हैं। वह भारतीय राजनीति में एक अद्वितीय आवाज हैं, जो हमेशा सत्ता और विशेषाधिकार के खिलाफ बोलते हैं।


येचुरी का मानना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी देश होना चाहिए। वह सांप्रदायिकता और जातिवाद के प्रबल आलोचक हैं। वह यह भी मानते हैं कि गरीबी और असमानता भारत की सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं, और उन्हें दूर करने के लिए सरकार को अधिक काम करना चाहिए।


येचुरी के नेतृत्व में, माकपा भारत के प्रमुख विपक्षी दलों में से एक बन गई है। पार्टी ने हाल के विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है और यह संसद में भी ताकत हासिल कर रही है।


सिताराम येचुरी एक ऐसे नेता हैं जिन पर लोगों को गर्व है। वह निःस्वार्थ, ईमानदार और देश के लिए समर्पित हैं। वे भारतीय राजनीति में एक प्रेरणा हैं और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं कि लोगों की आवाज सुनी जाए।