भारतीय राजनीति के चर्चित नेता, सीताराम येचुरी अपने बेबाक विचारों और तीखी आलोचनाओं के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में एक साक्षात्कार में, उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की स्थिति पर चिंता व्यक्त की और सत्ता के बढ़ते केंद्रीकरण पर आक्रोश जताया।
येचुरी ने कहा, "देश में लोकतंत्र के लिए ये बहुत ही नाजुक समय है। सत्ता का निरंतर केंद्रीकरण और विपक्षी आवाज़ों का दमन हमारे संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है। अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी तो हम तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं।
येचुरी ने कहा कि सरकार द्वारा संस्थानों पर हमला और स्वतंत्र प्रेस को दबाने की कोशिशें जनतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। उन्होंने कहा, "जो लोग अपनी विचारधारा से अलग राय रखते हैं उन्हें चुप कराया जा रहा है। पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं और मीडिया को सरकारी नियंत्रण में लाया जा रहा है। यह चिंताजनक है।
येचुरी ने सरकार पर सत्ता का केंद्रीकरण करने और राज्यों के अधिकारों को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "बीजेपी शासन के तहत, केंद्र राज्य सरकारों पर अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। राज्यों की आवाज़ों और पहचान को दबाया जा रहा है। यह हमारी संघीय व्यवस्था को कमजोर करता है।
येचुरी का मानना है कि विपक्ष को मौजूदा स्थिति को चुनौती देनी चाहिए और सरकार की गलतियों को उजागर करना चाहिए। उन्होंने कहा, "विपक्ष को एकजुट होकर सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करनी चाहिए। हमें लोगों को सरकार की गलतियों से अवगत कराना चाहिए और उन्हें उनके अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए।
येचुरी ने कहा कि जनतंत्र की सुरक्षा में जनता की भी ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा, "लोगों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए। उन्हें सरकार को जवाबदेह ठहराना चाहिए और स्वतंत्र संस्थानों के महत्व को समझना चाहिए।
येचुरी ने कहा कि वर्तमान स्थिति से निकलने के लिए, सरकार को अपने कार्यों पर पुनर्विचार करना होगा और संस्थानों की स्वतंत्रता का सम्मान करना होगा। उन्होंने विपक्ष से एकजुट होने और जनता को जागरूक करने की अपील की। उन्होंने कहा, "यह एक कठिन लड़ाई है, लेकिन अगर हम एकजुट रहेंगे तो हम लोकतंत्र को बचा सकते हैं। हमें इसमें हार नहीं माननी चाहिए।
येचुरी के विचार भारतीय राजनीति में व्यापक चर्चा का विषय बन गए हैं। उनके शब्दों ने चिंता और बहस को जन्म दिया है कि क्या भारत वास्तव में तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। यह देखना अभी बाकी है कि सरकार येचुरी की आलोचना पर क्या प्रतिक्रिया देगी और क्या देश में जनतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए कदम उठाएगी।