झारखंड की धरती पर जहां आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष सदियों पुराना है, वहीं एक नायिका ने अपने साहस और दृढ़ संकल्प से इतिहास की धारा को मोड़ दिया। सीता सोरेन, जो कभी एक साधारण गांव की लड़की थीं, आज आदिवासी आंदोलन की एक प्रेरक शख्सियत हैं।
सीता का जन्म दुमका जिले के एक छोटे से गांव में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा तक पहुंच सीमित थी, लेकिन उनके भीतर सामाजिक अन्याय के खिलाफ आग जलती थी। महज 16 साल की उम्र में, वह मुंडा जनजाति की क्रांतिकारी नेता बिरसा मुंडा से प्रेरित होकर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई में कूद पड़ीं।
सीता ने अपने आसपास के गांवों में यात्रा की, आदिवासियों को संगठित किया और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया। उन्होंने भू-अधिकारों, रोजगार और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए आंदोलन शुरू किया। उनकी दृढ़ता और करिश्माई व्यक्तित्व ने बहुत सारे लोगों को आकर्षित किया, और जल्द ही उनका आंदोलन पूरे झारखंड में फैल गया।
सरकार द्वारा भारी दमन का सामना करने के बावजूद, सीता अपने संकल्प से विचलित नहीं हुईं। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और जेल में भी डाल दिया गया, लेकिन उनकी आत्मा कभी नहीं टूटी। जेल में बिताए समय ने उन्हें और भी मजबूत बनाया। उन्होंने महिलाओं और युवाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया, यह विश्वास करते हुए कि वे ही बदलाव के असली इंजन हैं।
सीता का संघर्ष आखिरकार सफल हुआ। झारखंड को 2000 में एक अलग राज्य का दर्जा मिला, जो आदिवासी आंदोलन की एक बड़ी जीत थी। सीता को उनके अथक प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया, और उन्हें झारखंड विधानसभा का सदस्य चुना गया। उन्होंने राज्य में गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए काम किया।
आज, सीता सोरेन आदिवासी अधिकार आंदोलन का एक प्रतीक हैं। वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने और एक बेहतर भविष्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी कहानी क्रांति की शक्ति, अदम्य भावना और दृढ़ता की असाधारण कहानी है।
सीता सोरेन का संघर्ष हमें याद दिलाता है कि साधारण व्यक्ति भी असाधारण चीजें कर सकते हैं, अगर उनके पास जुनून, साहस और एक अटूट विश्वास है। वह सभी के लिए एक प्रेरणा हैं, जो दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं।