सुप्रीम कोर्ट: न्याय का मंदिर या राजनीतिक अखाड़ा?




भारतीय न्यायपालिका का सर्वोच्च स्तंभ, सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णयों और अपने न्यायधीशों के आचरण के लिए चर्चा और विवाद का केंद्र बिंदु बन गया है। कुछ इसे न्याय का मंदिर मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक अखाड़े में बदलते देख रहे हैं।
न्याय का मंदिर
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इतिहास में कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जिनका भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा से लेकर भ्रष्टाचार पर हमला करने तक, अदालत ने न्याय सुनिश्चित करने और कानून के शासन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उदाहरण के लिए, 1973 के केशवानंद भारती मामले में अदालत का निर्णय भारतीय संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को स्थापित करने वाला एक मील का पत्थर था। इस फैसले ने संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से रद्द नहीं किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने लैंगिक समानता और एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2018 के नवतेज सिंह जौहर मामले में, अदालत ने धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया, जिससे भारत में समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया गया।
राजनीतिक अखाड़ा
हाल के वर्षों में, सुप्रीम कोर्ट कुछ विवादास्पद फैसलों में शामिल रहा है, जिससे आरोप लगे हैं कि यह राजनीतिक हस्तक्षेप और पक्षपात के अधीन है। कुछ आलोचकों का तर्क है कि अदालत कुछ मामलों में सत्ताधारी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है।
उदाहरण के लिए, 2019 के अयोध्या भूमि विवाद मामले में अदालत का फैसला कई हलकों में विवादास्पद था। हिंदुओं को विवादित भूमि सौंपने का फैसला सरकार को लाभ पहुंचाने वाला माना जाता था, भले ही यह कुछ मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
इसके अतिरिक्त, कुछ लोगों ने न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता की कमी के बारे में चिंता जताई है। वे मानते हैं कि राजनीतिक दलों के प्रभाव से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है, जिससे अदालत की निष्पक्षता और स्वतंत्रता कमजोर होती है।
न्याय की तलाश
सुप्रीम कोर्ट के रूप में न्यायपालिका की भूमिका जटिल और मांगलिक है। यह न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है, बल्कि न्याय सुनिश्चित करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी है।
हाल के वर्षों में चुनौतियां रही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह उम्मीद की जाती है कि भविष्य में भी अदालत इन मूल्यों को बनाए रखेगी और न्याय के मंदिर की भूमिका निभाती रहेगी, न कि राजनीतिक अखाड़े की।
चिंतन का विषय
सुप्रीम कोर्ट के भविष्य पर चिंताएं वास्तविक हैं। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। हम सभी को अदालत की भूमिका और वर्तमान चुनौतियों के बारे में जागरूक होना चाहिए और इसका समर्थन करना चाहिए।
आख़िरकार, सुप्रीम कोर्ट हम सभी का है। यह हमारे अधिकारों की रक्षा करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए मौजूद है। हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए और इसे अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने की अनुमति देनी चाहिए। यह न केवल हमारे लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी न्याय का मंदिर बना रहेगा।