सांभल का इतिहास 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है, जब यह पांचाल राज्य का एक हिस्सा था। बाद में, यह मौर्य, कुषाण और गुप्त साम्राज्यों के शासन में आया। 12वीं शताब्दी में, सांभल लोदी वंश के अधीन आया, जिसने शहर को अपनी राजधानी बनाया। लोदी काल के दौरान, सांभल एक महत्वपूर्ण व्यापार और प्रशासनिक केंद्र बन गया।
16वीं शताब्दी में, सांभल मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। मुगल शासन के दौरान, सांभल ने अपनी समृद्धि और वैभव की ऊंचाइयों को छुआ। शहर में कई खूबसूरत मस्जिदें, मकबरे और महल बनाए गए, जो आज भी मुगल स्थापत्य कला के शानदार उदाहरण हैं।
सांभल की सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारतों में शाही जामा मस्जिद है, जिसे लोदी वंश द्वारा 15वीं शताब्दी में बनवाया गया था। मस्जिद अपने विशाल गुंबद, नक्काशीदार मेहराब और नाजुक नक्काशी के लिए जानी जाती है। एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बारादरी है, जो मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में बना एक आठ-खंभों वाला मंडप है।
सांभल की ऐतिहासिक विरासत केवल इसके स्मारकों तक ही सीमित नहीं है। शहर अपने पारंपरिक शिल्प और व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। सांभल की जरी जरदोजी, जो जटिल धातु के धागों से कशीदाकारी है, विश्व प्रसिद्ध है। शहर अपने मसालेदार व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है, विशेष रूप से "सांभलिया बिरयानी", जो चावल, मांस और मसालों से बना एक व्यंजन है।
सांभल अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ एक जीवंत और आकर्षक शहर है। इसकी ऐतिहासिक इमारतें, पारंपरिक शिल्प और स्वादिष्ट व्यंजन इसे उत्तर प्रदेश के सबसे आकर्षक स्थलों में से एक बनाते हैं।