एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य त्रेतायुग में पृथ्वी पर आए थे और उन्होंने अपने तेज से इस मंदिर के स्थान को पवित्र किया था। कहा जाता है कि उस समय यहाँ एक विशाल तिलक का पेड़ था, जिसके नीचे भगवान सूर्य ने विश्राम किया था। तभी से इस स्थान का नाम सूर्य तिलक राम मंदिर पड़ा।
इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चंदेल शासक त्रिलोकी वर्मन द्वारा करवाया गया था। मंदिर का निर्माण खजुराहो के मंदिरों से मिलते-जुलते नागर शैली में किया गया है, जो भारतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मंदिर दो भागों में विभाजित है - गर्भगृह और मंडप। गर्भगृह में भगवान सूर्य की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जो सोने के मुकुट और आभूषणों से सुशोभित है। मंडप में भगवान विष्णु और उनके दस अवतारों की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
सुबह और शाम की पूजा के समय, मंदिर परिसर में घंटियों की मधुर ध्वनि गूँजती है, जो भक्तों को आध्यात्मिक जागृति प्रदान करती है। मंदिर में प्रतिदिन कई भक्त दर्शन के लिए आते हैं, और विशेष रूप से सूर्य ग्रहण के दिन, यहाँ हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
सूर्य तिलक राम मंदिर अपनी दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और उन्हें जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
यदि आप कभी उत्तर प्रदेश के झाँसी शहर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो सूर्य तिलक राम मंदिर अवश्य जाएँ। यह एक ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ आप आध्यात्मिक आनंद और शांति पा सकते हैं। मंदिर की दिव्यता और चमत्कारों की कहानियाँ आपको जीवन भर याद रहेंगी।