स्वतंत्रता दिवस पर भाषण




आदरणीय प्राचार्य महोदय, अध्यापकगण और मेरे प्रिय साथी छात्रों,

आज, हम अपने देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यह हमारे लिए गर्व और उत्सव का दिन है, लेकिन यह उन शहीदों को याद करने का भी अवसर है जिन्होंने इस महान राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया है।

15 अगस्त, 1947 हमारे इतिहास का एक महान दिन था, जिस दिन हमने सदियों की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ा और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरे। इस स्वतंत्रता को हासिल करना कोई आसान काम नहीं था। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अनगिनत कठिन संघर्ष और बलिदान किए। वे जेलों में बंद किए गए, अत्याचार किए गए और यहां तक कि मारे भी गए, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सपनों को नहीं छोड़ा।

  • महात्मा गांधी की अहिंसा और सत्य का मार्ग,
  • सुभाष चंद्र बोस के "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" के नारे,
  • लाल बहादुर शास्त्री के "जय जवान, जय किसान" के आह्वान
  • эти नारे हमारे स्वतंत्रता संग्राम की भावना को दर्शाते हैं।

    स्वतंत्रता की हमारी 75वीं वर्षगांठ न केवल हमारे अतीत को याद करने का अवसर है, बल्कि हमारे भविष्य की कल्पना करने का भी अवसर है। जैसा कि हम अपने देश के अगले अध्याय में प्रवेश करते हैं, हमें उन मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता है जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारे लिए छोड़े हैं।

    हमें अपने राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए और सभी धर्मों के लोगों के बीच शांति और समझ को बढ़ावा देना चाहिए। हमें गरीबी, भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय जैसी सामाजिक बुराइयों से लड़ने की भी आवश्यकता है।

    हमारी युवा पीढ़ी हमारे राष्ट्र का भविष्य है। यह आप पर निर्भर है कि आप हमारे देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं। शिक्षा और कौशल में निवेश करके और एक ऐसा समाज बनाने के लिए काम करके जहां सभी के पास अवसर और समानता हो, आप हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार कर सकते हैं।

    आज, हम उन बहादुर पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हम उनके बलिदानों को कभी नहीं भूलेंगे। हम अपनी शक्तियों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा और हमारे महान राष्ट्र के भविष्य को सुरक्षित करने में लगाएंगे।

    भारत माता की जय!

    वंदे मातरम!