स्वतंत्र वीर सावरकर
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर का नाम अग्रणी क्रांतिकारियों में शुमार किया जाता है। वे एक महान क्रांतिकारी, विचारक और राष्ट्रवादी थे। वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था।
सावरकर की शिक्षा पुणे में हुई। कम उम्र से ही उनका मन क्रांतिकारी विचारों से भरा हुआ था। उन्होंने 1899 में "मित्र मेला" नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।
1904 में, सावरकर लंदन चले गए जहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की। इंग्लैंड में रहते हुए, वे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। उन्होंने "इंडियन होम रूल सोसाइटी" की स्थापना की और "इंडिया हाउस" नामक एक छात्रावास की स्थापना की। इंडिया हाउस क्रांतिकारियों का एक अड्डा बन गया था।
1910 में, सावरकर को "द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस" पुस्तक लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए हिंसा का आह्वान किया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 50 साल की जेल की सजा सुनाई और अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया।
सेलुलर जेल में सावरकर को अमानवीय यातनाएं दी गईं। फिर भी, उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों का त्याग नहीं किया। उन्होंने जेल में कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें "हिंदुत्व", "1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" और "माफी वीर गाथा" शामिल हैं।
1921 में, सावरकर को जेल से रिहा किया गया। वे भारत लौट आए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की। आरएसएस एक दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी संगठन है जो हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा का अनुसरण करता है।
सावरकर ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक महान क्रांतिकारी, विचारक और राष्ट्रवादी थे। उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।