सावित्रीबाई फुले जयंती




सावित्रीबाई फुले, भारत की एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और शिक्षिका थीं। उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका माना जाता है। उनका जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था।

सावित्रीबाई का विवाह 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ, जो एक समाज सुधारक और डॉक्टर थे। साथ में, उन्होंने महिलाओं और निम्न जाति के लोगों की शिक्षा और अधिकारों के लिए काम किया।

सावित्रीबाई ने 1848 में भारत का पहला बालिका विद्यालय, पुणे में स्थापित किया। उन्होंने महिलाओं के लिए एक अनाथालय और एक विधवा आश्रम भी स्थापित किया।

सावित्रीबाई एक दलित कार्यकर्ता भी थीं। उन्होंने छुआछूत और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्हें भारत में सामाजिक न्याय की अग्रणी के रूप में याद किया जाता है।

सावित्रीबाई फुले का 10 मार्च, 1897 को निधन हो गया। वह भारत में महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों के लिए एक प्रेरणा बनी हुई हैं।

भारतीय महिलाओं की शिक्षा में सावित्रीबाई फुले का योगदान

सावित्रीबाई फुले भारत में महिलाओं की शिक्षा की अग्रणी थीं। उन्होंने भारत का पहला बालिका विद्यालय स्थापित किया और महिलाओं के लिए कई अन्य स्कूलों की स्थापना में मदद की।

सावित्रीबाई का मानना था कि शिक्षा महिलाओं को खुद के लिए सोचने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने में सक्षम बनाती है। उन्होंने कहा, "स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है।"

सावित्रीबाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत में महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। आज, भारत में लाखों महिलाएं शिक्षित हैं और वे विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं।

दलित आंदोलन में सावित्रीबाई फुले का योगदान

सावित्रीबाई फुले एक दलित कार्यकर्ता भी थीं। उन्होंने छुआछूत और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

सावित्रीबाई का मानना था कि सभी लोग समान हैं और उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "सभी इंसान एक जैसे हैं, किसी में ऊंच या नीच नहीं है।"

सावित्रीबाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत में दलित आंदोलन को बल मिला। आज, भारत में लाखों दलित सामाजिक न्याय और समानता के लिए आवाज उठा रहे हैं।

समाज सुधारक के रूप में सावित्रीबाई फुले की विरासत

सावित्रीबाई फुले भारत में एक महान समाज सुधारक थीं। महिला अधिकारों, दलित आंदोलन और साक्षरता के प्रसार में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा।

सावित्रीबाई की विरासत आज भी प्रासंगिक है। भारत में महिलाएं और दलित अभी भी भेदभाव और असमानता का सामना कर रहे हैं। सावित्रीबाई का जीवन और कार्य हमें सामाजिक न्याय के लिए लड़ने और एक अधिक समान और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए प्रेरित करता है।