सावित्री ठाकुर
आज से लगभग 100 साल पहले, ऐसे समय में जब महिलाओं को घर की चारदीवारी के अंदर ही रहना था, एक क्रांतिकारी महिला का जन्म हुआ, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई। उस महिला का नाम था सावित्री ठाकुर।
सावित्री का जन्म 23 नवंबर, 1914 को महाराष्ट्र के सातारा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता एक डॉक्टर थे और माता एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। सावित्री को बचपन से ही देशभक्ति का जज्बा विरासत में मिला था।
वर्ष 1930 में, जब सावित्री महज 16 साल की थीं, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। जल्द ही, सावित्री एक प्रमुख क्रांतिकारी बन गईं और उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा कई बार गिरफ्तार किया गया। लेकिन सावित्री ने हार नहीं मानी और अपने देश को आजाद कराने का संकल्प लिया।
एक बार, सावित्री को एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा आदेश दिया गया कि वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना बंद करें। सावित्री ने साहस के साथ जवाब दिया, "मैं मरने तक नहीं रुकूंगी!" उनकी इस बहादुरी ने अन्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया और आंदोलन को और गति दी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, सावित्री ने सामाजिक कार्य में अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम करती रहीं। उन्होंने कई स्कूलों और अनाथालयों की स्थापना की। सावित्री को उनके सामाजिक कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म विभूषण भी शामिल था।
सावित्री ठाकुर की कहानी हमें याद दिलाती है कि महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं हैं। वे भी देश के लिए बलिदान दे सकती हैं और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। सावित्री का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए, चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं।
आजादी के 75 साल बाद भी सावित्री ठाकुर की विरासत हमें प्रेरित करती रहती है। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि एक व्यक्ति भी बदलाव ला सकता है, अगर उसके पास जुनून और दृढ़ संकल्प हो।
सावित्री ठाकुर के बारे में कुछ दिलचस्प बातें:
- वह भारत की पहली महिला थीं जिन्हें अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की सेलुलर जेल में कैद किया गया था।
- उन्हें "राष्ट्र माता" के नाम से भी जाना जाता था।
- उनकी मृत्यु 17 अक्टूबर, 1993 को हुई।