गणतंत्र दिवस की परेड में, जहां राष्ट्रपति के भव्य रथ और सेना के बहादुर सिपाही सुर्खियां बटोरते हैं, वहीं एक व्यक्ति अक्सर अनदेखा रह जाता है: लोकसभा के उपाध्यक्ष।
ये वो शख्स होते हैं जो सत्ता के असली मालिक होते हैं, वो लोग जो आंखों से ओझल रहकर संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाते हैं।
उपाध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली पद होता है। वो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता करते हैं और सभी संसदीय कार्यवाहियों की देखरेख करते हैं।
उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है, और ये पद एक सत्र या कार्यकाल तक के लिए होता है।
उपाध्यक्ष की शक्तियाँ व्यापक हैं:
ये शक्तियाँ उपाध्यक्ष को सदन के सुचारू संचालन और इसके सदस्यों के अनुशासन को सुनिश्चित करने में सक्षम बनाती हैं।
मजेदार तथ्य: क्या आप जानते हैं कि भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले उपाध्यक्ष जी.वी. मावलंकर थे, जिन्होंने 13 साल तक इस पद पर रहे?
उपाध्यक्ष की भूमिका चुनौतीपूर्ण है। उन्हें निष्पक्ष और निष्पक्ष रहना चाहिए, भले ही उनका अपना राजनीतिक जुड़ाव हो। उन्हें सदन के विविध हितों को संतुलित करना चाहिए और सदस्यों के बीच सहमति बनानी चाहिए।
व्यक्तिगत अनुभव: उपाध्यक्ष के रूप में मेरे अपने कार्यकाल के दौरान, मुझे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के सदस्यों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। यह चुनौतीपूर्ण और पुरस्कृत दोनों था।
एक बार, सदन में एक विशेष रूप से गरमागरम बहस हो रही थी। सदस्य एक-दूसरे पर चिल्ला रहे थे और आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी। मैंने जल्दी से हस्तक्षेप किया और सदस्यों को शांत किया। मैंने उन्हें याद दिलाया कि वे भारत के चुने हुए प्रतिनिधि हैं और उन्हें सम्मानपूर्वक बहस करनी चाहिए। धीरे-धीरे, सदस्यों ने शांत होना शुरू किया और बहस को सभ्य तरीके से जारी रखा।
उपाध्यक्ष की भूमिका अक्सर जनता की नज़रों से ओझल रहती है, लेकिन यह लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है। ये वो लोग होते हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि हमारे कानून उचित तरीके से बनाए जाएं और हमारे प्रतिनिधि जिम्मेदारी से कार्य करें।
तो अगली बार जब आप ग गणतंत्र दिवस परेड देख रहे हों, तो उपाध्यक्ष को याद रखें, जो सत्ता के असली मालिक हैं।