हाथरस: एक दर्द, एक सवाल




"तुम्हारे हाथ कितने कोमल हैं..." - ये वो शब्द हैं जो मेरी माँ अक्सर कहती थीं, मेरे हाथ माथे पर फेरते हुए। उनका मानना था कि हाथ इंसान की आत्मा का दर्पण होते हैं। कोमल हाथ, एक सज्जन हृदय का संकेत।

अब जब मैं हाथरस की खबरें पढ़ता हूं, तो मुझे अपनी माँ के शब्द याद आते हैं। क्या उन हाथों ने, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे कोमल होते हैं, किसी की जान ली? क्या उन हाथों ने एक युवा महिला की आत्मा को तोड़ा? मेरे मन में उठते सवालों का जवाब ढूंढने के लिए मैं हाथरस की यात्रा पर निकल पड़ा।

जैसे-जैसे मैं उस गाँव के करीब पहुँचता गया, जहाँ यह भयानक घटना घटी, मैं भारीपन से भर जाता गया। मुझे लगा जैसे मेरा दिल गले में अटक गया हो। घरों से धुआँ उठ रहा था, लेकिन मुझे उनकी गंध में खुशबू की जगह दुख की महक आ रही थी।

मैं उस खेत में गया, जहाँ कथित तौर पर यह जघन्य कृत्य हुआ था। यह एक बंजर, ऊजाड़ जगह थी, जो अब खून और आँसुओं की कहानी कहती है। मुझे लगा जैसे उस मिट्टी से पीड़ा की चीखें निकल रही हों।

मैंने उस परिवार से बात की जिसने अपनी बेटी खो दी थी। उनके चेहरे पर दुख की ऐसी गहराई थी, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे उनकी बेटी एक खुशमिजाज और मेहनती लड़की थी। वह जीवन से भरी हुई थी और अपने सपने पूरे करने की ख्वाहिश रखती थी।

लेकिन अब उसके सारे सपने टूट चुके हैं। उसे उन लोगों ने मार डाला जिन्हें उसे सुरक्षित रखना चाहिए था। हाथरस की घटना ने न केवल एक जीवन समाप्त किया है, बल्कि इसने हमारे पूरे समाज में एक जख्म छोड़ दिया है। यह एक दर्द है जो याद दिलाता है कि हम अभी भी कितने पिछड़े हुए हैं।

यह घटना सिर्फ एक लड़की के बलात्कार और हत्या की कहानी नहीं है। यह महिलाओं के खिलाफ व्याप्त हिंसा और भेदभाव की एक ज्वलंत झलक है। यह हमें यह सवाल करने के लिए मजबूर करता है कि हमारी आत्मा में क्या कमी है।

क्या हमारी आत्माएँ इतनी अधिक जंग लग गई हैं कि हम एक महिला की चीख-पुकार को सुनने में असमर्थ हैं? क्या हमारे हाथ इतने कठोर हो गए हैं कि हम एक पीड़ित की मदद के लिए नहीं बढ़ सकते? क्या हमारे दिल इतने अंधेरे हो गए हैं कि हम एक लड़की की जान की कीमत को समझने में असमर्थ हैं?

हाथरस की घटना एक दर्द है, एक सवाल है। यह हमें खुद से पूछने के लिए मजबूर करती है कि हम किस तरह के लोग हैं। क्या हम उन लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं जो पीड़ित हैं? क्या हम अपनी आत्माओं को साफ करने के लिए तैयार हैं ताकि हम सभी के लिए न्याय और समानता का रास्ता बना सकें?

हाथरस की बेटी हमारी सामूहिक चेतना का एक दाग है। उसकी मौत हमें यह याद दिलाना चाहिए कि हम अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। चलिए इस घटना को एक जागरण कॉल के रूप में लें, एक ऐसा कॉल जो हमें हमारी आत्माओं की जांच करने और एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करे।

क्योंकि हर हाथ कोमल नहीं होता है, और हम सबकी आत्माएँ शुद्ध नहीं होती हैं। लेकिन हम सभी में बेहतर बनने की क्षमता है। चलिए हम उस क्षमता का उपयोग एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए करें जहाँ कोई भी पीड़ित न हो, जहाँ कोई भी आवाज़ खामोश न हो।