दुष्ट होलिका की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो एक राक्षस राजा था। हिरण्यकश्यप अपने भक्तों द्वारा पूजे जाने की मांग करता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को बहुत क्रोधित करती थी, और उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। होलिका को आग से नहीं मारा जा सकता था, इसलिए उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर एक जलती हुई चिता में प्रवेश किया। लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से, प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका आग में जलकर खाक हो गई।होलीकान दहन का उत्सव
होलीकान दहन होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोग खुले स्थानों पर लकड़ी और अन्य ज्वलनशील पदार्थों से होलिका जलाते हैं। होलिका की लपटें बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। लोग होलीकान दहन में भाग लेकर अपने जीवन से नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।एक व्यक्तिगत अनुभव
मैंने इस होलीकान दहन को कई बार मनाया है। यह एक ऐसा त्यौहार है जो मेरे दिल के बहुत करीब है। होलिका की लपटों को देखना एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला अनुभव होता है, जो नई शुरुआत और आशा का प्रतीक होता है। होलीकान दहन में भाग लेना मुझे याद दिलाता है कि भले ही जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ आएँ, अंततः अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है।होलीकान दहन का महत्व
होलीकान दहन केवल एक त्यौहार नहीं है; यह एक अनुस्मारक है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। होलीकान दहन एक ऐसा त्यौहार है जो हमें आशा और ताकत प्रदान करता है, यह विश्वास दिलाता है कि हम यही आशा किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।