होली के रंग में डूबे, बुराई का दहन
होली, रंगों और खुशियों का त्योहार, हमारी आत्माओं को एक साथ लाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जैसा कि होलिका दहन की पौराणिक कथा में दर्शाया गया है।
होलिका नाम की राक्षसी बहन थी जिसे भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया था कि आग उसे नहीं जला सकती। उसका भाई हिरण्यकश्यप, एक क्रूर शासक, चाहता था कि हर कोई केवल उसकी पूजा करे। लेकिन उनके पुत्र प्रह्लाद ने विष्णु की भक्ति की।
क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया। लेकिन होलिका का आशीर्वाद विफल हो गया, और प्रह्लाद की भक्ति के कारण वह जल गई। इसी घटना को होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।
आज, हम भी होलिका दहन के अलाव के चारों ओर एकत्र होते हैं और बुराई का प्रतीकात्मक दहन करते हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे जीवन से अज्ञान, अहंकार और दुर्भावना दूर हो जाए।
होलिका दहन की रात में, आगें पूरे देश में जगमगाती हैं, आकाश को नारंगी और पीले रंग की रोशनी से भर देती हैं। हवा में खुशियों और उत्साह की गंध आती है।
लोग अलाव के चारों ओर नृत्य करते हैं, गाते हैं और रंग डालते हैं। बच्चे आनंद से हंसते हैं, जबकि वयस्क पुरानी यादों को साझा करते हैं। यह एक जादुई रात है जहां हर कोई एक परिवार में बदल जाता है।
लेकिन होली सिर्फ एक उत्सव नहीं है। यह आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक विकास का समय भी है। आग के प्रकाश में, हम अपने जीवन पर चिंतन करते हैं और अपने दोषों और खामियों का सामना करते हैं।
होलिका दहन की ज्वाला हमें याद दिलाती है कि हम भी बुराई के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं। यह हमें सचेत रहने और अपने विचारों, शब्दों और कार्यों में सावधानी बरतने के लिए प्रेरित करता है।
इसलिए, जब आप इस होली में रंगों से खेलते हैं और अलाव के चारों ओर नृत्य करते हैं, तो बुराई का दहन करने की पौराणिक कथा को याद रखें। अपनी आत्मा को पवित्र करें, और अच्छाई, प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलें।
होली की शुभकामनाएँ!