ભાદરવા મહિનાના કૃષ્ણ પક્ષની અષ્ટમી તિથિએ આવતી 'આહોઇ આઠમ' એ માતા અને બાળકના અનન્ય બંધનનો તહેવાર છે. આ દિવસે માતાઓ પોતાના બાળકોની સુખ-સમૃદ્ધિ અને રક્ષણ માટે વ્રત રાખીને આહોઇ માતાની પૂજા કરે છે.
આહોઇ આઠમની કથા ઘણી પ્રાચીન અને રસપ્રદ છે. પ્રાચીન સમયમાં, સિમોલતા नाम की एक गरीब स्त्री રહેતી थी. તેના सात पुत्र थे, पर वे सभी छोटी उम्र में ही मर जाते थे. सातवें पुत्र के जन्म के बाद, वह बहुत चिंतित हो गई और उसने एक साधु से सलाह मांगी.
साधु ने उसे बताया कि उसके सातवें पुत्र को बचाने के लिए उसे आहोरई माता का व्रत रखना होगा. सिमोलता ने साधु के बताए अनुसार व्रत रखा और पूरे दिन भूखी-प्याસी रही. शाम को, उसने आहोरई माता की पूजा की और उन्हें अपने बेटे को बचाने की प्रार्थना की.
आहोरई माता ने सिमोलता की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके बेटे को बचा लिया. तब से, माताएँ अपने बच्चों की रक्षा और दीर्घायु के लिए आहोरई आठम का व्रत रखती हैं.
आहोरई आठम के दिन, माताएँ अपने घर के किसी कोने में आहोरई माता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करती हैं. वे पूरे दिन उपवास करती हैं और शाम को, वे आहोरई माता की आरती करती हैं और उन्हें भोग लगाती हैं.
आहोरई आठम के दिन, कई माताएँ अपने बच्चों को उपहार भी देती हैं, जैसे कि नए कपड़े या खिलौने. आहोरई आठम का त्योहार माता और बच्चे के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है.