14 अप्रैल




14 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड का दिन था। यह एक ऐसा दिन था जिसने भारत के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ दिया। इस दिन, ब्रिटिश सेना ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा पर गोलियां चलाई थीं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे।

जलियांवाला बाग का इतिहास

जलियांवाला बाग एक उद्यान था जो अमृतसर शहर के केंद्र में स्थित था। यह स्थान सिखों के लिए एक पवित्र स्थल था और बैसाखी उत्सव के दौरान एक बड़े समागम स्थल के रूप में उपयोग किया जाता था। 13 अप्रैल, 1919 को, बैसाखी उत्सव के अवसर पर, हजारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे।

दुखद घटनाएँ

उस दिन, ब्रिटिश सेना के ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बाग को घेर लिया और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर गोलियां चलवा दीं। गोलीबारी लगभग दस मिनट तक चली और सैकड़ों लोग मारे गए। मरने वालों की संख्या अनिश्चित है, लेकिन अनुमान है कि कम से कम 379 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए।

जलियांवाला बाग हत्याकांड एक क्रूर और अमानवीय कार्य था। यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद की क्रूरता का एक सबूत था और इसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को हवा दे दी। इस घटना ने महात्मा गांधी को भी बहुत प्रभावित किया, जिन्होंने घटना के विरोध में अपने नाइटहुड का त्याग कर दिया।

जलियांवाला बाग आज

आज, जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है। बाग में एक स्मारक बनाया गया है, जहाँ हत्याकांड में मारे गए लोगों के नाम खुदे हुए हैं। स्मारक के पास एक संग्रहालय भी है जहाँ हत्याकांड का इतिहास प्रदर्शित किया गया है।

जलियांवाला बाग का महत्व

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस घटना ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति गुस्से और आक्रोश को बढ़ाया। इसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को भी तेज कर दिया और अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की।

जलियांवाला बाग हत्याकांड को कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए। यह एक दुखद घटना थी जिसने भारत के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।