Bibek Debroy, एक विद्वान और विचारक




परिचय:
भारतीय आर्थिक परिदृश्य में, बिबेक देबरॉय एक प्रमुख व्यक्ति हैं। एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, अनुवादक और विचारक, वह अपनी विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि और जटिल मुद्दों को सरल और प्रासंगिक तरीके से समझाने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
बिबेक देबरॉय का जन्म 25 जनवरी, 1955 को शिलांग, मेघालय में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रवींद्रनाथ ठाकुर के शांति निकेतन में प्राप्त की, और फिर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया।
अकादमिक और अनुसंधान कैरियर:
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, देबरॉय ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाया। 1993 में, वह भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI), कोलकाता में शामिल हो गए, जहां वे प्रोफेसर बन गए। वह पब्लिक अफेयर्स इंडिया के निदेशक भी रहे, जो एक गैर-लाभकारी थिंक-टैंक है।
सरकारी सेवा:
2017 में, देबरॉय को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस भूमिका में, उन्होंने आर्थिक नीति और सुधारों पर सरकार को सलाह दी। वर्तमान में, वह यूपीएलबीआईसीई में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और सौदी अरब के किंग अब्दुल्ला पेट्रोलियम अध्ययन और अनुसंधान केंद्र में एक वरिष्ठ शोध साथी हैं।
अनुवादक और लेखक:
अर्थशास्त्र में अपने काम के अलावा, देबरॉय एक प्रसिद्ध अनुवादक भी हैं। उन्होंने संस्कृत महाभारत और नीतिशास्त्र का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। वह कई पुस्तकों के लेखक भी हैं, जिनमें "इंडिया बाय डिजाइन: द एनैक्टमेंट ऑफ ए ड्रीम" और "द इंटरेस्टिंग टाइम्स: एन इंडियन पर्सपेक्टिव ऑन द वर्ल्ड" शामिल हैं।
सम्मान और मान्यता:
अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए, देबरॉय को 2015 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वह एक प्रतिष्ठित फैलो भी हैं और कई पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं।
विचार और विरासत:
बिबेक देबरॉय की विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि और विचारों का आर्थिक नीति और भारतीय समाज दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। उनकी रचनाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था की समझ को आकार देने में मदद करती रही हैं, और उनके अनुवाद कार्य ने संस्कृत ग्रंथों को व्यापक दर्शकों तक पहुँचाया है।
निष्कर्ष:
बिबेक देबरॉय एक ऐसे विद्वान और विचारक हैं जिनकी विरासत आने वाले कई वर्षों तक भारतीय आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करती रहेगी। अपनी विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि, संवादात्मक लेखन और संस्कृत साहित्य के लिए जुनून के माध्यम से, उन्होंने भारत के आर्थिक और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।