जन्म से ही कानून के क्षेत्र में रुचि रखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम की डिग्री हासिल की और 1972 में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। अपने कानूनी करियर के दौरान, उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें केशवानंद भारती मामला भी शामिल है, जिसने भारत के संविधान की मूल विशेषताओं को स्थापित किया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को 2016 में सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 2023 में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश बने। मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उन्होंने न्यायपालिका में महत्वपूर्ण सुधार किए, जिसमें अदालतों के डिजिटल परिवर्तन और न्याय तक पहुंच को आसान बनाना शामिल है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के न्यायिक फैसले उनके प्रगतिशील विचारों और व्यक्तियों और समाज के अधिकारों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की विशेषता रखते हैं। "नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ उनका फैसला" धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले प्रावधानों की असंवैधानिकता पर एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसी तरह, "निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने वाले उनके फैसले" ने भारतीयों की गोपनीयता और स्वायत्तता की रक्षा की है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने न्याय तक पहुंच को आसान बनाने के लिए भी काम किया है। उन्होंने "Nyay Bandhu" कार्यक्रम की स्थापना की, जो गरीबों और वंचितों को कानूनी सहायता प्रदान करता है। उन्होंने "अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग" शुरू करने का भी आह्वान किया है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भारतीय न्यायपालिका के एक सच्चे स्तंभ हैं। उनके न्यायिक निर्णयों ने भारतीय कानून के परिदृश्य को बदल दिया है और उन्होंने देश को एक अधिक समान और न्यायपूर्ण समाज बनाने में मदद की है। न्याय की उनकी अटूट प्रतिबद्धता और प्रगतिशील दृष्टिकोण आने वाले वर्षों में भारतीय न्यायशास्त्र को आकार देना जारी रखेगा।