\Karwa Chauth\: एक प्रेम की पवित्र डोर




"तुम जो मांगू मैं दूंगी जी, बस तुम मुझको मांगना,
तुम जो कहेंगे मैं कर जाऊंगी, बस तुम मुझे बताना।"

करवा चौथ का पावन पर्व एक ऐसा सांस्कृतिक मिलन है जहां महिलाएं अपने पति की सलामती, दीर्घायु और कल्याण के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। यह पर्व शरद ऋतु में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को कार्तिक माह में मनाया जाता है।

इस पवित्र दिन का इतिहास बहुत पुराना है, जिसका उल्लेख महाभारत और पद्मपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, सती सावित्री अपने पति सत्यवान के लिए यमराज से युद्ध लड़ी थीं और अपने पति को मृत्यु के मुख से वापस ले आई थीं। तब से ही करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखने लगीं।

करवा चौथ की विधि और रस्में:
  • इस दिन प्रातः काल स्नान के पश्चात महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं।
  • सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखा जाता है।
  • शाम को श्रृंगार करके करवा चौथ की पूजा की जाती है।
  • पूजा में माता गौरी, भगवान शिव, भगवान कार्तिकेय और चंद्र देवता का आह्वान किया जाता है।
  • चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएं करवे से जल अर्पित करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं।
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है।
करवा चौथ की महत्ता:
करवा चौथ का त्योहार न केवल पति और पत्नी के बीच के प्रेम और बंधन को मजबूत करता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और मेल-मिलाप का प्रतीक भी है। इस दिन महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, व्रत कथा सुनती हैं और अपने सुहाग की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं।

करवा चौथ में एक अटूट विश्वास और समर्पण होता है। महिलाएं अपने पति के लिए व्रत रखकर यह दिखाती हैं कि वे अपने पति के साथ सात जन्मों तक रहने के लिए तैयार हैं। यह पर्व पति-पत्नी के बीच एक पवित्र डोर है जो उन्हें हमेशा के लिए जोड़ देती है।

आधुनिक युग में करवा चौथ:
आज के बदलते समय में भी करवा चौथ की परंपरा का महत्व कम नहीं हुआ है। हालांकि, वर्तमान समय में महिलाएं करवा चौथ को अपनी सुविधानुसार मनाती हैं। कुछ महिलाएं निर्जला उपवास रखने की बजाय फलाहार या सात्विक भोजन लेती हैं।
निष्कर्ष:
करवा चौथ प्रेम, समर्पण और बलिदान का एक पवित्र पर्व है जो सदियों से भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है। यह पर्व न केवल पति और पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करता है, बल्कि सामाजिक एकता और मेल-मिलाप को भी बढ़ावा देता है। आज भी, करवा चौथ का पर्व उतना ही महत्वपूर्ण और प्रचलित है जितना कि सदियों पहले था।