Maa Kushmanda: नवरात्रि की चौथी माँ, ब्रह्मांड की रचयिता
नवरात्रि का चौथा दिन माँ कुष्मांडा को समर्पित है। माँ कुष्मांडा को ब्रह्मांड की रचयिता माना जाता है। इनकी आठ भुजाएँ और एक मुख है। इनके सात हाथों में कमल, बाण, धनुष, कमंडल, चक्र, गदा और अमृत कलश हैं। आठवें हाथ में इनके पास जप की माला है। माँ कुष्मांडा की उपासना करने से बीमारियों का नाश होता है और रोगियों को स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
माँ कुष्मांडा की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर का डर और भय समाप्त हो जाता है। साथ ही इनकी उपासना करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है। माँ कुष्मांडा की पूजा करने का सबसे अच्छा समय सुबह का होता है। पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करके वहाँ माँ कुष्मांडा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीप जलाकर माँ कुष्मांडा का ध्यान करें। इसके बाद इनके मंत्र का जाप करें।
माँ कुष्मांडा का मंत्र:
ॐ कुष्मांडायै नमः
इस मंत्र का 108 बार जाप करें। जाप करने के बाद माँ कुष्मांडा को भोग लगाएँ। भोग लगाने के बाद माँ कुष्मांडा की आरती करें। आरती करने के बाद माँ कुष्मांडा से प्रार्थना करें। प्रार्थना करने के बाद माँ कुष्मांडा की मूर्ति या चित्र को अपने पूजा स्थान पर रख दें।
माँ कुष्मांडा की आरती:
जय कुष्मांडा माता, जय कुष्मांडा माता
सिंहासन पे विराज रही हो, जय कुष्मांडा माता
सृष्टि की तुम आधार हो, जय कुष्मांडा माता
पूरे ब्रह्मांड की पालनहार हो, जय कुष्मांडा माता
आठ भुजा धारिणी है, जय कुष्मांडा माता
जगत में सुख-शांति देने वाली हो, जय कुष्मांडा माता
ब्रह्मांड की तुम जननी हो, जय कुष्मांडा माता
रोगों को दूर करने वाली हो, जय कुष्मांडा माता
आपकी महिमा अपरंपार है, जय कुष्मांडा माता
भक्तों की तुम रक्षक हो, जय कुष्मांडा माता
जय कुष्मांडा माता, जय कुष्मांडा माता
जय कुष्मांडा माता