MLC चुनाव का खेल




एक सियासत की फिलॉसफी है कि जो जितना जोर-जोर से चिल्लाता है, उसका उतना ही फायदा होता है.

उम्मीद है, आपने ये बात समझ ली होगी.

अगर नहीं समझी तो एक और छोटी सी क्लास लेते हैं.

राजनीति में आप सच का साथ देते हैं तो सच आपके साथ नहीं देगा. आपको चिल्लाना है, झूठ-मूठ बोलना है, और जो लोग आपके साथ सहमत नहीं हैं उन्हें गाली देनी है.

यही पॉलिटिक्स की ABC है.

अभी-अभी जो MLC चुनाव हुए हैं, उनमें भी यही देखने को मिला.

एक तरफ थे सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार, जो दावा कर रहे थे कि उन्होंने चांद पर बिजली पहुंचा दी है और दूसरी तरफ थे विपक्षी पार्टी के उम्मीदवार, जो दावा कर रहे थे कि उन्होंने सूरज को ठंडा कर दिया है.

दोनों तरफ से इतना जोर-जोर से नारेबाजी हो रही थी कि पूछिए मत.

जनता भी परेशान थी कि क्या करें.

अंत में जो हुआ, वो सब जानते हैं.

सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार जीत गए.

क्योंकि उन्होंने ज्यादा जोर से चिल्लाया था.

अब आप सोच रहे होंगे कि जोश तो विपक्षी पार्टी के उम्मीदवारों में भी था. वो भी तो खूब चिल्ला रहे थे.

तो मैं आपको बता दूं कि इसमें भी एक राज है.

सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवारों के पास एक सीक्रेट हथियार था.

और वो सीक्रेट हथियार था- नोटबंदी.

जी हां, नोटबंदी.

आपको याद होगा कि कुछ वक्त पहले सरकार ने नोटबंदी की थी.

और उस नोटबंदी का सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को ही हुआ था.

क्योंकि उनके पास पहले से ही काला धन था, जिसे उन्होंने नई करेंसी में बदल लिया.

और उस काले धन का इस्तेमाल उन्होंने चुनाव प्रचार में किया.

तो आप समझ गए होंगे कि MLC चुनाव में जीत का असली कारण क्या था.

नोटबंदी.

और नोटबंदी के बाद भी अगर कोई सत्ताधारी पार्टी को हराना चाहता है, तो उन्हें भी नोटबंदी का इस्तेमाल करना होगा.

तो अगली बार जब भी आप कोई चुनाव लड़ें, तो याद रखना- जोर-जोर से चिल्लाना और नोटबंदी ही चुनाव जीतने का मंत्र है.